स्नानं कुंभे महापुण्यं, धर्मक्षेत्रे महोत्सवम्।
त्रिवेणी संगमे दिव्यं, मोक्षद्वारं सदा स्मृतम्।।
विराट भारत पुरुष की संकल्पसिद्धियों के सर्वोत्कृष्ट महोत्सव एवं भारतीय सनातन संस्कृति के सर्वोच्च वैभवपूर्ण धार्मिक एवं आध्यात्मिक आयोजन “सर्वसिद्धिप्रद: कुम्भ:” की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक पावन अनुगूंज के मध्य भारतवर्ष की सनातन थाती के शिखर स्वरूप “महाकुम्भ” की अमृत यात्रा समग्र वैश्विक मानवता को अभिसिंचित करने हेतु अनवरत जारी है।
यूनेस्को द्वारा महाकुंभ को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में दी गई मान्यता को पुष्ट करते हुए यह महाकुंभ तीर्थराज प्रयाग के संगम तट पर सम्पूर्ण मानवता की सांस्कृतिक आध्यात्मिक एवं धार्मिक चेतना का संगम स्थल रूप में प्रतिष्ठित हो चुका है।
मां गंगा,यमुना एवं अदृश्य सरस्वती के इस त्रिवेणी संगम पर आकर आपको भारतवर्ष की उस सनातन धर्म संस्कृति के प्रत्यक्ष दर्शन होते हैं, जो भक्ति, आस्था एवं परम्परा के संगम स्वरूप का पर्याय रही है।

महाकुम्भ अर्थात ऐसा जन समुद्र जहां से भारतीय सनातन संस्कृति का वैभव समस्त विश्व को प्रकाशित कर रहा है। आस्था एवं अनुष्ठान के संगम पर त्रिवेणी के जल में स्वयं को पवित्र करने को लालायित यह सनातनी जन समुद्र आज वैश्विक धरोहर है।
आज जहां सम्पूर्ण विश्व महाकुंभ के आध्यात्मिक वैभव से चकाचौंध है , वहीं वह इतने वृहद विशाल आयोजन हेतु उत्तर प्रदेश सरकार के सुप्रबंधन से चमत्कृत भी है।यह आयोजन इस विशद् आत्मबल एवं विराट संकल्प का साक्षात् प्रमाण है कि कैसे एक सरकार एक शहर में एक धार्मिक अनुष्ठान में साठ करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं को सुव्यवस्थित ढंग से आस्था की डुबकी लगाने में सफल हो सकती है।
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विश्व के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन में प्रतिदिन उमड़ती करोड़ों मनुष्यों की भीड़ के लिए सर्वोत्कृष्ट सुविधाओं एवं सुव्यवस्थाओं का संयोजन कर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वैश्विक स्तर पर बहुत बड़ी लकीर खींच दी है। इतने विशाल जनसमुद्र हेतु सुव्यवस्थाओं के पुल बांधने में योगी आदित्यनाथ एवं उनकी सरकार पूर्णतः सफल हुई है।

इस महाकुंभ में आस्था एवं अर्थ के अकल्पनीय संयोजन से योगी सरकार ने भारतवर्ष की अर्थव्यवस्था में उत्तर प्रदेश के योगदान का एक नया स्वर्णिम अध्याय जोड़ा है। योगी आदित्यनाथ ने वैश्विक स्तर पर कोविड आपदा प्रबंधन के पश्चात अद्भुत अलौकिक अप्रतिम महाकुंभ के सुव्यवस्थित प्रबन्धन के जरिए उन्होंने समूचे विश्व को यह दिखा दिया है कि एक संन्यासी ही उत्कृष्ट राजा हो सकता है। क्योंकि एक वास्तविक संत या संन्यासी ही एक शासक के रूप में निस्पृह भाव से लोक का पोषण कर सकता है।
यह भारतीय सनातन संस्कृति का अमृतकाल सरीखा है। इक्कीसवीं सदी के रजत वर्ष का प्रारंभ प्रतिष्ठा द्वादशी एवं महाकुंभ से हो तो इससे सुखद और क्या ही होगा। महाकुंभ के अनेक मंतव्य हैं, अनेकों श्रुतियां हैं।किंतु अमृत की अभिलाषा है तो सभी बंधनों को तोड़कर एक साथ हम सबको जीवन मंथन हेतु जुटना होगा। तभी अमृत निकलेगा और तभी मानवता पुष्ट होगी।इस उद्देश्य की प्राप्ति में यह महाकुंभ मील के पत्थर के रूप में प्रतिष्ठित हो रहा है क्योंकि यहां चतुर्दिक समरसता से परिपूर्ण जीवन की धारा प्रवाहमान है। कबीर दास ने इसी एकाकार हो जाने वाली भावना पर लिखा है कि-
जल में कुंभ,कुंभ में जल है,बाहर भीतर पानी।
फूटा कुंभ जल जलहिं समाना,यह तथ कथौ गियानी।।