महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर त्रिवेणी संगम का नजारा अलौकिक हो गया। झांझों की मधुर ध्वनि, मंत्रोच्चार की गूंज और भारत की सांस्कृतिक विविधता संगम में एकाकार होती दिखी। देशभर से आए श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाकर महाकुंभ के अंतिम स्नान को यादगार बना दिया। आधी रात से ही संगम तट पर भक्तों का हुजूम उमड़ने लगा, कुछ ने ब्रह्म मुहूर्त की प्रतीक्षा की तो कई श्रद्धालुओं ने निर्धारित समय से पहले ही स्नान कर लिया।
पश्चिम बंगाल से चार दोस्तों की खास संगम यात्रा
महाकुंभ की पावन बेला में पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी से आए चार दोस्त भी शामिल थे, जिन्होंने पीले धोती-कुर्ते में संगम स्नान किया। आकाश पाल (एमएनसी कर्मचारी), अभिजीत चक्रवर्ती (कंटेंट राइटर), राजा सोनवानी (फार्मास्युटिकल क्षेत्र) और अभिषेक पाल (वकील)— अलग-अलग क्षेत्रों से होने के बावजूद, इस दिव्य अनुभव ने उन्हें एक साथ ला दिया।
आकाश पाल ने बताया, “हमने पश्चिम बंगाल से प्रयागराज तक कार से यात्रा की। जहां वाहन प्रतिबंधित थे, वहां से पैदल चलकर संगम पहुंचे। इस अद्भुत अवसर का हिस्सा बनना अविस्मरणीय है।” ये श्रद्धालु गंगा जल ले जाने के लिए विशेष भगवा कंटेनर भी साथ लाए थे। इनके अलावा दुर्गापुर, कूचबिहार और कोलकाता से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे।
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नेपाल से पहुंचे श्रद्धालुओं का जोश
इस भव्य आयोजन में सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पड़ोसी देश नेपाल से भी श्रद्धालु शामिल हुए। नेपाल के जनकपुर से आए मनीष मंडल, रब्बज मंडल, अर्जुन मंडल और दीपक साहनी अपने चाचा डोमी साहनी के साथ महाशिवरात्रि पर संगम में डुबकी लगाने पहुंचे। सभी ने भगवान शिव की थीम वाली एक जैसी पोशाक पहनी थी, और तीन युवाओं ने ‘महाकाल’ लिखा गमछा भी ओढ़ रखा था।
डोमी साहनी ने बताया, “हम जनकपुर से आए हैं, जो माता सीता की जन्मस्थली है। स्नान के बाद हम अयोध्या में भगवान राम के दर्शन के लिए भी जाएंगे।” यह श्रद्धालु समूह पहले जनकपुर से जयनगर तक, फिर भारतीय रेलवे से प्रयागराज पहुंचा।
144 वर्षों की विरासत ने बढ़ाया उत्साह
इस महाकुंभ का महत्व इस बार और भी खास था, क्योंकि 144 वर्षों बाद यह दुर्लभ संयोग बना। इसी कारण श्रद्धालुओं का उत्साह चरम पर था। इस आध्यात्मिक संगम का हिस्सा बनने के लिए कर्नाटक, बिहार, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश और कई अन्य राज्यों से लोग पहुंचे।
इस ऐतिहासिक आयोजन ने एक बार फिर सांस्कृतिक एकता और आध्यात्मिक आस्था की मिसाल पेश की, जहां देश-विदेश से श्रद्धालु धर्म, आस्था और संस्कारों से जुड़े इस पावन क्षण का हिस्सा बने।