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तीन चुनाव हारने के बाद भी कितने ताकतवर है केशव प्रसाद मौर्य , क्या 27 में होगी छुट्टी ?

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करीब तीन साल पहले की बात है जब चर्चा चली कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को बीजेपी आलाकमान पद से हटाना चाहता है। यह टाइम 2022 के विधानसभा चुनाव के करीब 9 महीने पहले का था। हालांकि, उन्हें पद से नहीं हटाया गया था।लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव में जब बीजेपी को यूपी में करारी हार का सामना करना पड़ा योगी नेतर्त्व में तो फिर से यहीं खबरें चल पड़ी कि यूपी बीजेपी में सबकुछ सहीं नहीं चल रहा है। लोकसभा चुनाव के बाद केशव प्रसाद मौर्य के कार्यसमिति की बैठक में दिए गए बयान ने इन सबको और हवा दे दी। मौर्य ने उस समय कहा कि संगठन सरकार से बड़ा है। संगठन से बड़ा कोई नहीं होता है। संगठन सरकार से बड़ा था, बड़ा है और हमेशा बड़ा रहेगा। केशव के इस बयान के बाद प्रदेश में कई तरीके के सवाल उठने लगे थे ,लोग कह रहे थे कि केशव का यह बयान योगी को लेकर था ,लेकिन केशव प्रसाद मौर्य ने कोई प्रतिकिर्या नहीं दिया था।

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समय समय पर केशव और योगी के बीच अनबन की खबरे आती रही हैं ,लेकिन कभी खुलकर दोनों नेता एक दूसरे के सामने नहीं आये है ,शायद इसीलिए सारी बातें सिर्फ एक रुमार बनकर रह गयी है ,,लेकिन अब सवाल उठता है कि आखिर केशव प्रसाद मौर्य के अंदर वो कौन सी खूबी है जिसे दिल्ली इतनी पसंद कर रही हैं। आइए अब जानतें है कि आखिर केशव प्रसाद मौर्य कितने ताकतवर नेता हैं जिन्हें चुनाव हारने के बाद भी प्रदेश में बड़ी जिम्मेदारी दी गई है।उत्तर प्रदेश की राजनीति में केशव मौर्य के कद का दूसरा ओबीसी नेता नहीं है। वह पिछड़ों के सबसे बड़े नेता बनकर पिछले कुछ सालों में उभरे हैं। इसी वजह से पार्टी उन पर भरोसा करती है। केशव प्रसाद मौर्य को राज्य में मौर्य और कुशवाहा वोटर्स को साधने के लिए भी पार्टी ने उन्हें ही जिम्मेदारी दी हैं । गैर यादव वोटर्स को एकजुट करने में भी केशव मौर्य का योगदान काफी अहम माना जाता है।उत्तर प्रदेश के कुल वोटर्स में ओबीसी वोटर्स की हिस्सेदारी करीब 45 फीसदी के आसपास है। ऐसा कहा जाता है कि यादव वोटरों का एक बड़ा हिस्सा समाजवादी पार्टी का समर्थक है। यह उत्तर प्रदेश की सबसे प्रभावशाली जाति भी मानी जाती है। गैर वोटर्स को एकजुट करने की वजह से भी भारतीय जनता पार्टी का आलाकमान उन्हें नजरअंदाज नहीं पाता है।उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य पहली बार इलाहाबाद की पश्चिमी विधानसभा सीट से चुनाव लड़े। वह साल 2002 में माफिया अतीक अहमद के खिलाफ बीजेपी के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े। वह महज सात हजार वोट पाकर चौथे नंबर पर रहे। इसके बाद वह साल 2007 में भी अगला विधानसभा चुनाव इलाहाबाद पश्चिम की सीट से ही लड़े। हालांकि, इस चुनाव में भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा।केशव प्रसाद मौर्य ने 2012 में विधानसभा सीट बदली और कौशांबी के सिराथू से चुनावी मैदान में उतरे। इस सीट से वह पहली बार भारतीय जनता पार्टी के विधायक चुने गए थे। वह साल 2014 का लोकसभा इलेक्शन फूलपुर से लड़े और तीन लाख से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की। यह सीट कभी कांग्रेस पार्टी का गढ़ मानी जाती थी। यहां पर पहली बार बीजेपी ने जीत का स्वाद चखा था। इसके बाद से धीरे-धीरे उनके कद में बढ़ोतरी होती चली गई।

केशव प्रसाद मौर्य को साल 2016 में बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। 14 साल से प्रदेश की सत्ता से बाहर रही भारतीय जनता पार्टी ने साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बहुत बढ़िया प्रदर्शन किया। भारतीय जनता पार्टी को करीब 325 सीटें मिलीं थीं। इसके बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद का बड़ा दावेदार माना जा रहा था। हालांकि, उन्हें डिप्टी सीएम पद से ही संतोष करना पड़ा और योगी आदित्यनाथ को सीएम पद की कुर्सी मिली। उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने साल 2022 में फिर से सिराथू से चुनाव लड़ा और इस बार वह समाजवादी पार्टी की पल्लवी पटेल से हार गए। मौर्य को कुल 98941 वोट मिले थे, वहीं पटेल के खाते में 106278 मत गए थे। चुनाव में हार के बाद भी पार्टी ने उन्हें फिर से डिप्टी सीएम बना दिया। केशव को अमित शाह का भी खास माना जाता रहा हैं ,,उत्तर प्रदेश में कोई बात अगर होती है तो केशव तुरंत दिल्ली पहुंचकर अमित शाह के शरण में पहुंचते रहे है ,, जिसका फ़ायदा उनको बीते कई सालों से मिलता रहा है ,,माना ये भी जा रहा है कि 27 चुनाव में बीजेपी केशव के आलावा किसी अन्य obc नेता की तलाश में हैं ,,बीजेपी को अगर 27 के पहले अगर कोई बड़ा नेता मिल जाता है तो केशव की छुट्टी भी हो सकती है ,,,वैसे होने वाले 27 विधानसभा चुनाव में भी केशव की मुश्किलें बढ़ सकती है ,अगर वो सीट को बदलते नहीं है.

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