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9 महीने बाद धरती पर लौट रहीं सुनीता विलियम्स, दुनिया कर रही इंतजार!

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अंतरिक्ष में 9 महीने का लंबा सफर पूरा करने के बाद भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स जल्द ही धरती पर वापसी करेंगी। यह खबर पूरी दुनिया के लिए गुड न्यूज है, और हर कोई उस एतिहासिक पल का बेसब्री से इंतजार कर रहा है। लेकिन ऐसा ही इंतजार एक बार पहले भी किया गया था—जब एक और भारतीय मूल की महिला अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला मिशन पूरा कर धरती पर लौट रही थीं।

तब भी दुनिया उनकी सुरक्षित वापसी का इंतजार कर रही थी, लेकिन तकनीकी खराबी ने सबकुछ बदल दिया। कोलंबिया स्पेस शटल हादसे में उनका सपना अधूरा रह गया। संयोग से, इसी महीने 17 मार्च को उनकी जयंती थी, जो हमें उनके साहस और योगदान की याद दिलाती है।

कल्पना चावला, जिनका जन्म 17 मार्च 1962 को हरियाणा के करनाल में हुआ था, बचपन से ही अंतरिक्ष को छूने के सपने देखती थीं। पढ़ाई में अव्वल रहने वाली कल्पना का सपना था इंजीनियर बनना। जब वह आठवीं कक्षा में थीं, तो उन्होंने अपने पिता से साफ कहा था—”मैं एक दिन इंजीनियर बनकर दिखाऊंगी!”

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परिवार और जानने वाले बताते हैं कि कल्पना की अंतरिक्ष विज्ञान में गहरी रुचि थी। वे अक्सर अपने पिता से सवाल करतीं—”स्पेसक्राफ्ट आसमान में कैसे उड़ते हैं?” “क्या मैं भी कभी उड़ सकूंगी?” तब शायद उनके पिता भी नहीं जानते थे कि उनकी बेटी सिर्फ उड़ने के नहीं, बल्कि इतिहास रचने के लिए पैदा हुई थी!

अपने सपनों को हकीकत में बदलने के लिए कल्पना चावला ने कड़ी मेहनत की। 1982 में, उन्होंने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से वैमानिक इंजीनियरिंग (Aeronautical Engineering) में ग्रेजुएशन पूरा किया। लेकिन उनका सफर यहीं खत्म नहीं हुआ।

अपने लक्ष्य को पाने के लिए 1984 में उन्होंने अमेरिका का रुख किया और टेक्सास यूनिवर्सिटी से Aeronautical Engineering में मास्टर डिग्री हासिल की। यह विषय उन्हें इतना रोमांचक लगा कि उन्होंने 1988 में इसी में PHD भी कर ली।

अंतरिक्ष विज्ञान की गहराई को समझने के बाद कल्पना को एहसास हो गया था कि उनका अगला कदम NASA में शामिल होना है। अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर 1988 में ही उन्होंने NASA ज्वाइन कर लिया और इतिहास रचने की ओर पहला कदम बढ़ाया।

19 नवंबर 1997—यह वह ऐतिहासिक दिन था जब कल्पना चावला ने पहली बार अंतरिक्ष की उड़ान भरी। उन्होंने STS-87 कोलंबिया स्पेस शटल से अपना सफर तय किया। इस मिशन में वे 372 घंटे (करीब 15 दिन) अंतरिक्ष में रहीं और उनके स्पेसक्राफ्ट ने पृथ्वी के 252 चक्कर पूरे किए। यह सफर उनके बचपन के सपने को हकीकत में बदलने की पहली सीढ़ी था।

16 जनवरी 2003 को कल्पना चावला ने अपनी दूसरी और आखिरी अंतरिक्ष यात्रा शुरू की। वे फिर से कोलंबिया स्पेस शटल में सवार हुईं। यह मिशन तो सफल रहा, लेकिन वापसी के दौरान 1 फरवरी 2003 को एक दर्दनाक हादसा हो गया।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कोलंबिया शटल की सुरक्षित लैंडिंग पहले से ही संदिग्ध थी। हालांकि, पैनिक से बचने के लिए यह जानकारी एस्ट्रोनॉट्स को नहीं दी गई। बाद में जांच में पता चला कि टेक-ऑफ के दौरान शटल के बाहरी हिस्से से एक फोम का टुकड़ा टूट गया था, जिसने स्पेसक्राफ्ट की विंग को नुकसान पहुंचाया।जब शटल धरती के वायुमंडल में प्रवेश कर रहा था, तब हीट और दबाव के कारण एक बड़ा धमाका हुआ और शटल टुकड़ों में बिखर गया। इस दुर्घटना में कल्पना चावला सहित सातों एस्ट्रोनॉट्स की दर्दनाक मौत हो गई। हालांकि, कल्पना चावला आज भी दुनिया भर में लाखों लोगों के लिए प्रेरणा हैं। उनका सपना, उनकी मेहनत और उनका हौसला हर उस व्यक्ति को आगे बढ़ने की ताकत देता है, जो सितारों को छूना चाहता है।

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