14 अक्टूबर 1991 भारत के छोटे से कस्बें महू में एक बच्चे ने जन्म लिया। नाम रखा गया भीम राव लेकिन किसने सोचा था कि ये बच्चा आगे चलकर इतिहास के किताबों में अमर हो जायेगा। डॉक्टर भीमराव आंबेडकर एक ऐसा नाम जो आज स्वतंत्रता ,स्वाभिमान और न्याय का प्रतीक हैं .डॉक्टर भीम राव का जन्म एक दलित समुदाय के महान जाति में हुआ था। उस समय जाति भेदभाव और छुवा छूट का ऐसा अंधकार था जिसमे आंबेडकर का बचपन ही नहीं बल्कि पूरी जिंदगी इन संघर्षो से जूझती रहीं ,लेकिन भीम राव का जज्बा कुछ और ही कहानी लिखने वाला था .
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जी हां 1907 में भीम राव आंबेडकर ने मेट्रिक की परीक्षा पास की और उनकी इसी साल महाराष्ट्र में शादी भी हुई ,,1908 में डॉ. अंबेडकर ने बॉम्बे के एलफिंस्टन कॉलेज स्नातक की शिक्षा हासिल करने लिए एडमिशन लिया , स्नातक होने के बाद, उन्हें बांड के अनुसार बड़ौदा संस्थान में शामिल होना पड़ा। जब वे बड़ौदा में थे, तब उनके पिता का निधन हो गया, डॉ. डॉक्टर भीमराव की प्रतिभा ऐसी थी कि उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए महाराज सयाजीराव ने छात्रवृति दी ,यही छात्रवृति अंबेडकर को उच्च शिक्षा के अमेरिका ले गयी । कहा जाता है यह उनके शैक्षणिक जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ था। बाबा साहब ने अपने जीवन में कई डिग्री हासिल किये ,इसके आलावा भीम राव आंबेडकर अपना पूरा जीवन दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया ,,समय समय पर बाबा साहब ने कई सारे एतिहासिक काम किया ,,,15 अगस्त 1936 को उन्होंने दलित वर्गों, जिनमें से अधिकांश श्रमिक आबादी थी, के हितों की रक्षा के लिए स्वतंत्र लेबर पार्टी का गठन किया।1938 में कांग्रेस ने अछूतों के नाम में बदलाव करने के लिए एक विधेयक पेश किया। डॉ. अंबेडकर ने इसकी आलोचना की। उनके अनुसार नाम बदलना समस्या का समाधान नहीं है।1942 में उन्हें भारत के गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में श्रम सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया, 1946 में वे बंगाल से संविधान सभा के लिए चुने गए। उसी समय उन्होंने अपनी पुस्तक, हू वेयर शूद्राज़? प्रकाशित की,स्वतंत्रता के बाद 1947 में उन्हें नेहरू की पहली कैबिनेट में विधि एवं न्याय मंत्री नियुक्त किया गया। लेकिन 1951 में उन्होंने कश्मीर मुद्दे, भारत की विदेश नीति और हिंदू कोड बिल के प्रति नेहरू की नीति पर मतभेद जताते हुए मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया,,,1952 में कोलंबिया विश्वविद्यालय ने उन्हें भारत के संविधान के प्रारूपण के संबंध में उनके द्वारा किए गए कार्य के सम्मान में एल.एल.डी. की उपाधि प्रदान की। 1955 में उन्होंने थॉट्स ऑन लिंग्विस्टिक स्टेट्स नामक अपनी पुस्तक प्रकाशित की ,,,डॉ. बी.आर. अंबेडकर को 12 जनवरी, 1953 को उस्मानिया विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया। अंततः 21 वर्षों के बाद, उन्होंने 1935 में येओला में जो घोषणा की थी , उसे सच साबित कर दिया कि “मैं हिंदू के रूप में नहीं मरूंगा”। 14 अक्टूबर 1956 को, उन्होंने नागपुर में एक ऐतिहासिक समारोह में बौद्ध धर्म अपना लिया और 6 दिसंबर 1956 को उनकी मृत्यु हो गई।