आखिरकार मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी को कोर्ट ने हेट स्पीच के मामले पर दो साल की सजा सुना दी है। ऐसे में अब अब्बास अंसारी की विधायकी जाने पर तलवार लटक गई है। जानकारों की माने तो दो या दो से ज्यादा साल की सजा होने पर विधायकी या संसदी की सदस्यता चली जाती है। ऐसे में अगर अब्बास अंसारी की विधायकी जाती है तो आगे की लड़ाई अब्बास अंसारी और उनका परिवार कैसे लड़ेगा। अब्बास अंसारी के कंधो पर इस वक्त परिवार की और पिता के विरासत को सभांलने की जिम्मेदारी हैं।ऐसे में ये कहा जा रहा है कि अब्बास अंसारी की विधायकी जाने पर वो 27 चुनाव के पहले ओम प्रकाश राजभर का साथ छोड़ कर अखिलेश के साथ जुड़ सकते हैं .
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अब्बास अंसारी के चाचा सिबगतुल्लाह अंसारी पहले ही सपा ज्वाइन कर चुके हैं। ऐसे में अगर अब्बास अंसारी सपा के साथ जाते है तो अखिलेश यादव को पूर्वांचल में बड़ा फ़ायदा हो सकता हैं। अगर अब्बास अंसारी समाजवादी पार्टी के साथ जाते हैं, तो इसके पूर्वांचल की राजनीति, मुस्लिम वोट बैंक, और सपा की छवि—इन तीन स्तरों पर बड़ा असर हो सकता है। आइए इसे विस्तार से और साफ़-साफ़ समझते हैं। ये कहने में कोई दो राय नहीं है कि अब्बास अंसारी और उनका परिवार गाजीपुर, मऊ, आज़मगढ़, बलिया और जौनपुर जैसे जिलों में मजबूत पकड़ रखता हैं। अगर वे सपा से जुड़ते हैं तो समाजवादी पार्टी को इन जिलों में मुस्लिम और अंसारी बिरादरी के वोट में मजबूती मिलेगी।यहां भाजपा को चुनौती देने के लिए सपा को जमीनी स्तर पर ऐसे मजबूत स्थानीय चेहरों की ज़रूरत है।दूसरी सबसे बड़ी बात सपा पहले से ही मुस्लिम वोटरों के बीच लोकप्रिय है, लेकिन अगर अब्बास अंसारी साथ आते हैं, तो मुस्लिम मतदाता और ज्यादा संगठित होकर सपा के पक्ष में आ सकते हैं, खासकर युवाओं और पूर्वांचल के कस्बों में।बीएसपी और AIMIM जैसी पार्टियों से मुस्लिम वोट छिन सकते हैं।हालाँकि अब्बास अंसारी के सपा में जाने के बाद भाजपा निश्चित तौर पर इस गठजोड़ को “माफिया की वापसी” कहकर प्रचारित करेगी।योगी सरकार ने मुख्तार अंसारी और उनके नेटवर्क पर सख्त कार्रवाई की है, इसलिए भाजपा इसे कानून-व्यवस्था के मुद्दे में भुनाएगी।इससे मध्यम वर्ग और अपर कास्ट वोटरों में सपा के खिलाफ एक नकारात्मक भाव बन सकता है।लेकिन इन सब बीच सबसे ज्यादा नुकसान मायावती को होगा ,क्योकि मायावती पहले ही मुख्तार अंसारी को पार्टी से निकाल चुकी हैं।अब्बास अगर सपा में जाते हैं तो बसपा का पूर्वांचल में दलित–मुस्लिम समीकरण कमजोर हो जाएगा।इससे बसपा के कमजोर होते जनाधार को और झटका लगेगा।