उत्तर प्रदेश की राजनीति में बगावत करने वाले अक्सर खुद को “राजनीतिक चाणक्य” समझ बैठते हैं, लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी के तीन बागी विधायक—राकेश प्रताप सिंह, मनोज पांडे और अभय सिंह—ने जो चाल चली, वह उन्हीं पर उल्टी पड़ गई। अखिलेश यादव ने बिना देर किए तीनों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है।अब न केवल सपा का दरवाज़ा बंद हो गया है, बल्कि भाजपा में भी इन नेताओं के लिए वैसी जगह नहीं बची जैसी ये कल्पना कर रहे थे। राजनीतिक विश्लेषक इसे खुद की महत्वाकांक्षा में उलझे नेताओं की आत्मघाती गलती बता रहे हैं।तीनों विधायक सोचते रहे कि यदि सपा में बात नहीं बनी तो भाजपा उन्हें झट से गले लगा लेगी। लेकिन राजनीति में सब कुछ रणनीति से चलता है, भावनाओं से नहीं।याद करिये कि ये तीनों विधायक समाज वादी पार्टी में जब थे तब इनकी हेशायिता इनकी राजनीति ,इनकी पार्टी में कद ऊँची थी .
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अखिलेश के बगल में बैठकर राजनीति करते थे थे ,लेकिन जब से इन्होने अखिलेश यादव से बगावत की है तब से इनकी राजनैतिक पकड़ धीरे धीरे कमजोर होती चली हैं। मनोज पांडेय ये वो चेहेरा है जिसने ऊंचाहार विधानसभा क्षेत्र से लगातार तीन बार विधायकी की चुनाव में जीत हासिल की हैं। सपा की सरकार भले ही 2022 न बनी हो लेकिन अखिलेश यादव ने मनोज यादव पर भरोशा जताते हुए उनको सपा का मुख्य सचेतक बनाया था ,लेकिन मनोज पांडेय अखिलेश यादव को इसके बदले धोखा देकर अपनी महत्वाकाँक्षा को उजागर कर दिया था ,,,,ऐसे ही अभय सिंह जिनको बीजेपी ने टिकट तक नहीं दिया था उनको अखिलेश ने गले लगाकर न सिर्फ टिकट दिया बल्कि अखिलेश यादव खुद उनके चुनाव में जाकर अभय सिंह को चुनाव जिताने के लिए कई सारी सभाएं की थी ,,लेकिन अभय ने इसके बदले उनको धोखा दिया .यही राकेश प्रताप सिंह का रहा ,,,वो भी सपा के सिंबल पर चुनाव लड़कर बीजेपी के पाले में जा गिरे। इन सब घटनाओं के बावजूद भी अखिलेश काफी दिन तक इन लोगों के ऊपर कोई कार्यवाही नहीं की लेकिन अब जब पानी सर के पार पहुंच गया तब अखिलेश ने इन सब को पार्टी से निष्काषित कर दिया हैं। अब सवाल उठता है इन बागियों का राजनैतिक भविष्य क्या होगा ,तो प्रश्न का जवाब है ,कि फिलहाल इन तीनो नेताओं का कहना है कि हम बीजेपी के साथ जायेंगे इनमे कुछ लोगों ने बीजेपी के बड़े नेताओं से मुलाकात करके 27 के विधानसभा चुनाव का टिकट भी फ़ाइनल करा लिया हैं। राकेश प्रताप सिंह का कहना कि अखिलेश ने मुझे निष्कसित किया इसका मुझे गम नहीं है ,,मनोज पांडेय कह रहे है कि जातिवादी, विभाजनकारी सोचयुक्त, सनातन विरोधी, विकास विरोधी और हिन्दू देवी देवताओं की आस्था का मान मर्दन करने वाली, प्रभु राम पर अपमाजनक टिप्पणी करने वालों को पोषित पल्लवित करने वाली पार्टी का हास्यास्पद बयान हथप्रभ कर देने वाला है ! इसी तरीके से अभय सिंह लगभग लगभग यही बात दोहरा रहे हैं.वही ये बात जब उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक से पूछा गया कि क्या निष्कासित विधायक भाजपा में शामिल होंगे तो ब्रजेश पाठक ने कहा कि इंतजार कीजिए हम समय-समय पर फिर मिलेंगे, लेकिन हम सभी जनप्रतिनिधियों का हार्दिक स्वागत करते हैं.

हमारी सरकार उनके साथ खड़ी है और यह सुनिश्चित करेगी कि किसी भी जनप्रतिनिधि को किसी भी तरह की परेशानी न आए. फिलहाल भाजपा उत्तर प्रदेश में खुद अपनी गुटबाज़ी और जातीय समीकरणों से जूझ रही है। ऐसे में ऐसे नेताओं को शामिल करना जो किसी भी विचारधारा से नहीं, सिर्फ अवसर से जुड़े हों, भाजपा को खुद के कार्यकर्ताओं के सामने भी कमजोर करेगा।अब बात अगर अखिलेश यादव की करें तो पिछले कुछ सालों में अखिलेश यादव की राजनीति में एक अहम बदलाव दिखा है—अब वह न तो किसी दबाव में हैं और न ही पुराने समीकरणों से बंधे हैं।इन तीन विधायकों को निष्कासित कर उन्होंने दो बातें स्पष्ट कर दीं। सपा में दोहरा खेल नहीं चलेगा। दूसरी बात पार्टी अब नए नेताओं और विचारों की ओर बढ़ रही है,,,अखिलेश जानते हैं कि 2027 की लड़ाई नेतृत्व पर नहीं, संगठन और नीति पर लड़ी जाएगी, इसलिए उन्हें ऐसे बागी चेहरों से छुटकारा पाना जरूरी था।वही सूत्र कहते है कि भाजपा इन बागी विधायकों को लेकर दुविधा में है,,,अगर इन्हें शामिल करती है, तो अपने पुराने नेताओं और जमीनी कार्यकर्ताओं में असंतोष पनपेगा। अगर नहीं करती, तो यह तीनों पूरी तरह राजनीतिक निर्वासन की स्थिति में आ जाएंगे। इन नेताओं की ताकत न कोई बड़ा जनाधार है, न कोई विचारधारा। ऐसे नेता चुनावों के वक्त सिर्फ टिकट की भीड़ बढ़ाते हैं, परिणाम नहीं,,,यूपी की जनता अब ज्यादा समझदार है। मतदाता अब उन चेहरों को पहचान चुका है जो केवल सत्ता के लिए पाला बदलते हैं। इन तीनों विधायकों की बगावत को जनता ने कभी समर्थन नहीं दिया। न तो कोई बड़ा जन आंदोलन उनके पक्ष में दिखा, न ही जनता का भरोसा.

अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने” वाला मुहावरा शायद इन्हीं नेताओं के लिए बना हो। एक ओर अखिलेश यादव ने राजनीतिक परिपक्वता दिखाते हुए पार्टी को साफ किया,दूसरी ओर भाजपा भी उन्हें लेकर गंभीर नहीं दिख रही,,,अब ये बागी विधायक उस स्थिति में आ गए हैं जहां ‘न घर के रहे न घाट के’सियासत में जो लोग खुद को किंगमेकर समझते हैं, वो अगर जनता और संगठन दोनों को नज़रअंदाज़ करें, तो अक्सर गुमनामी ही उनका ठिकाना बनती है।