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मायावती और आकाश आनंद के इस फैसले से खुश हो गये अखिलेश ,बीजेपी की मुश्किलें बढ़ी

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विधानसभा उपचुनाव में बसपा के मजबूती से चुनाव लड़ने के दावे तो पार्टी के भीतर खूब हो रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि बसपा की फौज बिना पार्टी प्रमुख मायावती और नैशनल को-ऑर्डिनेटर आकाश आनंद के लड़ेगी। पार्टी के दोनों शीर्ष नेता उपचुनाव में अपने प्रत्याशियों के लिए प्रचार नहीं करेंगे। सूत्रों के मुताबिक सब कुछ अब जिला इकाइयों के भरोसे छोड़ दिया गया है। हालांकि, महाराष्ट्र और झारखंड में दोनों नेताओं के प्रचार के विकल्प खुले रखे गए हैं, जिस पर फैसला जल्द होगा।

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बता दे कि बीते एक दशक से बसपा की सियासी जमीन यूपी में सिमटती जा रही है। भले साल 2019 में बसपा के दस सांसद थे, लेकिन 2024 के परिणामों को देखते हुए यह साफ कहा जा सकता है कि वह गठबंधन का असर था, न कि केवल बसपा का। 2024 में जब बसपा अकेले चुनाव मैदान में उतरी तो वह एक बार फिर साल 2014 की तरह शून्य पर पहुंच गई। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी बसपा का केवल एक ही उम्मीदवार जीत सका था। 2024 में जब कोर वोटबैंक भी खिसका तो बसपा ने उपचुनाव में उतरने का फैसला किया, ताकि वह अपनी सियासी जमीन को फिर पा सके। पार्टी ने प्रत्याश भी तय किए। मायावती तमाम राजनीतिक मुद्दों पर हमलावर भी रहीं। ऐसे में उम्मीद जताई जा रही थी कि वह प्रचार करने निकलेंगी और बसपा पूरी मजबूती से इस चुनाव में लड़ती दिखेगी। हालांकि, अब यह तय हो गया है कि पार्टी अपने नेता के बूते नहीं बल्कि काडर की ताकत से ही लड़ेगी। दोनों नेता उपचुनाव में प्रचार से दूरी बनाए रखेंगे। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अगर मायावती और आकाश खुद प्रचार की कमान नहीं संभालते हैं तो एक बार फिर पूरा चुनाव भाजपा और सपा के बीच ही सिमट जाएगा। ठीक उसी तरह जैसे साल 2022 का विधानसभा चुनाव सिमटा था। कांग्रेस को दो, जबकि बसपा को एक पर जीत मिली थी। जानकार मायावती और आकाश के प्रचार से किनारा करने को एक बार फिर बसपा के लिए मुसीबत मान रहे हैं और उसे रेस से बाहर देख रहे हैं। हालांकि, सपा के साथ जमीन पर कांग्रेस का गठबंधन विजिबल न होने का लाभ बसपा को उसके कोर वोटरों की वापसी के तौर पर जरूर मिल सकता है। लेकिन यह उम्मीदवारों की जीत के लिए काफी नहीं होगा। बसपा की तरफ से इशारा होने के बाद जिलों में बसपा इकाइयों की कोशिश प्रत्याशियों के समर्थन में तेज हो गई हैं। आइये अब आपको बताते है कि आखिर क्यों लिया गया ये फैसला?तो बता दे कि ये देखा गया है कि साल 2014 के बाद से ही यूपी में चुनाव बाईपोलर हो रहे हैं। इस बार भी इसके त्रिकोणीय होने की संभावनाएं कम ही दिख रही हैं। ऐसे में मायावती और आकाश आनंद को पीछे ही रखने का फैसला लिया गया है, ताकि परिणामों को उनकी कोशिश के साथ जोड़कर न देखा जाए। पार्टी स्थितियां अपने लिए सामान्य होने तक इन दोनों नेताओं की साख पर सवाल नहीं खड़े होने देना चाहती है। जानकारों के मुताबिक जिस तरह साल 2024 के लोकसभा चुनाव के बीच से आकाश को एक झटके में किनारे करके उन्हें सुरक्षित किया गया था, उसी से इस फैसले को भी जोड़कर देखा जा रहा है।

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