आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने साफ कर दिया है कि वह दिल्ली विधानसभा चुनाव पूरी ताकत से लड़ने जा रहे हैं। पिछले दो विधानसभा चुनावों में बड़ी जीत दर्ज करने वाली आम आदमी पार्टी ने चुनावी तैयारियां पहले ही तेज कर दी हैं। केजरीवाल ने सभी 70 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है, जबकि बीजेपी अभी तक अपने उम्मीदवारों का नाम घोषित नहीं कर पाई है।
बीजेपी में यह उलझन बनी हुई है कि वह चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा पेश करें या नहीं। वहीं, केजरीवाल ने अपने उम्मीदवारों के चयन में सावधानी बरती है और कई नए चेहरों को मौका दिया है। इसके अलावा, उन्होंने कई विधायकों के टिकट भी काटे हैं। केजरीवाल अब एक बार फिर दिल्ली की सड़कों पर आकर चुनावी अभियान में जुट गए हैं।
केजरीवाल ने पार्टी की चौथी लिस्ट जारी करने के बाद कहा कि आम आदमी पार्टी पूरे आत्मविश्वास और तैयारी के साथ चुनाव लड़ रही है, जबकि बीजेपी के पास न तो मुख्यमंत्री का चेहरा है, न टीम, न ही कोई विजन। उन्होंने कहा कि बीजेपी का एक ही उद्देश्य है – “केजरीवाल हटाओ”।
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केजरीवाल ने यह भी स्पष्ट किया कि आम आदमी पार्टी दिल्ली में अकेले चुनाव लड़ेगी, हालांकि वह इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं, जिसकी अगुवाई कांग्रेस कर रही है। 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा गया था, लेकिन इससे दोनों दलों को कोई फायदा नहीं हुआ और बीजेपी ने दिल्ली की सभी सात सीटों पर जीत हासिल की थी।
अरविंद केजरीवाल ने न केवल दिल्ली, बल्कि पंजाब में भी 2022 विधानसभा चुनावों में पार्टी की अगुवाई की और वहां भी शानदार जीत दिलाई। इसके बाद, आम आदमी पार्टी ने कई राज्यों में अपनी पकड़ बनाने की कोशिश की, जैसे गोवा, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, और गुजरात में। इस प्रदर्शन के आधार पर निर्वाचन आयोग ने पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिया, जिससे केजरीवाल की सियासी ताकत भी और बढ़ी।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी और केजरीवाल की मुश्किलें तब बढ़ीं जब बीजेपी ने उन्हें दिल्ली के कथित शराब घोटाले का मास्टरमाइंड बताया। इस घोटाले में केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह को जेल जाना पड़ा, जिसका असर पार्टी और दिल्ली सरकार के कामकाज पर पड़ा। जब बीजेपी ने केजरीवाल से इस्तीफा मांगा, तो उन्होंने इस्तीफा देकर अपनी सहयोगी आतिशी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी। साथ ही, महिला मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए उन्होंने मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना की राशि बढ़ाकर 2100 रुपये करने का ऐलान किया।
बीजेपी को अब यह चिंता सताने लगी है कि क्या वह दिल्ली में फिर से सत्ता में आ पाएगी। 1993 में पहली बार दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुआ था, तब बीजेपी को सत्ता मिली थी। लेकिन 1993 से 2013 तक शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार रही, और फिर केजरीवाल ने 2013 में बीजेपी का सपना चूर-चूर कर दिया।
दोनों हालिया विधानसभा चुनावों ने यह साबित कर दिया है कि कांग्रेस दिल्ली में लगभग खत्म हो चुकी है, और उसकी स्थिति लगातार बिगड़ रही है। इस बार दिल्ली में सीधी टक्कर बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच होगी।
केजरीवाल जानते हैं कि बीजेपी उनकी पार्टी के नेताओं को तोड़ने की कोशिश कर रही है। हाल ही में, राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल ने केजरीवाल और उनकी सरकार पर सवाल उठाए, जो बीजेपी के लिए एक अवसर बन गया है। बीजेपी अब स्वाति मालीवाल के बयानों का इस्तेमाल केजरीवाल की सरकार के खिलाफ चुनौती पेश करने के लिए कर रही है।