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अंबेडकर और राम को साथ लाकर बीजेपी ने किया बड़ा प्लान , होगा जल्द ही बड़ा ऐलान

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27 का चुनाव जैसे जैसे नजदीक आ रहा हैं वैसे वैसे हर एक पार्टी अपनी अपनी तैयारियों को धार देने में लगी हुई हैं। इसी कड़ी में सूबे की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी अपने एक मास्टर प्लान पर काम कर रही हैं। कहा जाता कि यूपी में जिसको चुनाव जीतना हो वो दलितों को अगर साध ले तो आसानी से चुनाव में फतह हासिल कर सकता हैं। इसी लिये बीजेपी इस बार अम्बेडकर की जयंती पर एक बड़ी तैयारी कर रही हैं। कहा ये जा रहा कि आंबेडकर जयंती के कार्यक्रमों में इस बार उनका पूरा नाम डॉ.भीमराव ‘रामजी’ आंबेडकर का इस्तेमाल करने का सुझाव आरएसएस ने योगी को दिया हैं।

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अब सवाल यह उठ रहा है कि आखिर भाजपा आंबेडकर को इतनी अहमियत क्यों दे रही है। उनके नाम के साथ ‘रामजी’ शब्द के इस्तेमाल का क्या वजह है? तो आपको बता दे कि दरअसल, भाजपा आंबेडकर के जरिये PDA की काट तलाश रही है। लोकसभा चुनाव 2024 में I.N.D.I.A. ने PDA और संविधान के नाम पर वोट मांगे थे। इससे यूपी में उसे सफलता भी मिली। भाजपा के नेतृत्व वाला NDA 36 सीटों पर सिमट गया था जबकि 2019 में NDA को 62 सीटें मिली थीं। ऐसे में 2027 में दलित वोट बैंक को साधने की तैयारी है। इसी को ध्यान में रखकर भाजपा 2027 में आंबेडकर का सहारा लेना चाहती है।साथ ही भाजपा का मानना है कि आंबेडकर की उस छवि को भी बदलना जरूरी है, जो विपक्षी दलों ने बनाई है। यही वजह है कि उनके मूल नाम का इस्तेमाल कर उसे राम से भी जोड़ने की कोशिश होगी। नीले रंग का इस्तेमाल बसपा और दलित वोट बैंक पर आधारित अन्य पार्टियां करती हैं। इस छवि को भी बदलने का विचार भाजपा कर रही है।यह बैठक इसलिए भी अहम मानी जा रही है क्योंकि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव होना है। पिछले लोकसभा चुनाव में संघ और भाजपा के बीच आई तल्खी को लगातार दूर करने की भी कोशिश हो रही है। प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार नरेंद्र मोदी हाल ही में संघ कार्यालय गए थे। वहीं संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक भी हुई थी।इन दोनों घटनाक्रमों के तुरंत बाद यह समन्वय बैठक हो रही है। ऐसे में माना जा रहा है कि संघ और भाजपा पूरे तालमेल के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं। ऐसे में राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर प्रदेश स्तर तक अध्यक्ष के चुनाव के साथ ही विधान सभा चुनाव तक यह तालमेल बना रहे। सूत्रों के अनुसार प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव पर भी बैठक में चर्चा हुई।

यूपी में पहली बैठक पश्चिमी यूपी में ही रखी गई। सूत्रों का कहना है कि हाल ही में गाजियाबाद के ही लोनी के विधायक नंद किशोर गुर्जर का मामला आया था। कहा जा रहा है कि अन्य विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों के मन में भी खटास है। इसको रोकर बेहतर माहौल बनाने पर भी चर्चा हुई। बैठक में संघ, विश्व हिंदू परिषद, विद्या भारती, संस्कार भारती, वनवासी कल्याण आश्रम सहित कई अनुषांगिक संगठनों ने भी अपने अभियानों की जानकारी दी और कहा गया कि इनको गंभीरता से आगे बढ़ाया जाए। सीमापार से अवैध गतिविधियों पर भी चिंता जताई गई हैं ,,,बता दे कि जातीय समीकरणों की धुरी पर घूमती उत्तर प्रदेश की राजनीति में दलित आबादी की सदैव अहम भूमिका रही है। देश के सबसे बड़े राज्य में 21.1 प्रतिशत अनुसूचित जाति (एससी) यानी दलितों की आबादी है। आजादी के बाद कांग्रेस के साथ खड़ा रहा दलित तकरीबन ढाई दशक तक बसपा के साथ रहा, लेकिन अब उसमें भाजपा गहरी सेंध लगाते दिख रही है। बसपा से खिसकते दलित वोट बैंक को सपा के साथ ही कांग्रेस भी हथियाने की कोशिश में है। सपा-कांग्रेस गठबंधन को उम्मीद है कि दलित-मुस्लिम गठजोड़ से उन्हें अबकी चुनाव में लाभ होगा। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये हैं कि बीजेपी के अपने इस प्लान से इस बार के चुनाव में कितना फ़ायदा होगा ,,

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