उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव भले ही दो साल बाद यानी फरवरी-मार्च 2027 में हो, लेकिन बीजेपी ने अपनी रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। बीजेपी के सामने चुनौती विपक्ष इंडिया गठबंधन, खासकर समाजवादी पार्टी के पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए पॉलिटिक्स की है। लोकसभा चुनाव 2024 में पीडीए पॉलिटिक्स की नैया पर सवार अखिलेश यादव ने भारतीय जनता पार्टी को पीछे छोड़ दिया। भारतीय जनता पार्टी का सवर्ण-पिछड़ा-दलित वोट बैंक वाला समीकरण कमजोर हुआ तो प्रदेश का राजनीतिक दृश्य ही बदल गया। हालांकि, विधानसभा उपचुनाव आते-आते योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी ने बाउंस बैक किया। ‘बंटोगे तो कटोगे’ और ‘एक हैं तो सेफ हैं’ जैसे नारों के जरिए पार्टी ने अपनी खोई ताकत फिर से हासिल की है।
ALSO READ तीन चुनाव हारने के बाद भी कितने ताकतवर है केशव प्रसाद मौर्य , क्या 27 में होगी छुट्टी ?

अब सीएम योगी एक बार फिर 80-20 पॉलिटिक्स पर लौटते दिख रहे हैं।सीएम योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा चुनाव 2027 के समीकरण को साफ कर दिया है। उन्होंने कहा है कि 2027 में भी लड़ाई 80 बनाम 20 की होने वाली है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के दौरान भी इसी प्रकार का दावा सीएम योगी करते नजर आए थे। अब एक बार फिर इस प्रकार की रणनीति ने प्रदेश की राजनीति में हलचल तेज कर दी है। बताते चले की 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को प्रदेश में करारी हार का सामना करना पड़ा था । जिसके बाद करीब एक दशक बाद भाजपा का जनाधार प्रदेश में खिसकता दिखा। 80 लोकसभा सीटों में से महज 33 पर भाजपा के उम्मीदवार विजयी हुए। वहीं, सहयोगी दलों के पाले में केवल तीन सीटें आईं। विपक्षी गठबंधन इंडिया ने शानदार प्रदर्शन किया।भाजपा की तमाम रणनीति पर पानी फेरते हुए समाजवादी पार्टी ने यूपी में ऐतिहासिक प्रदर्शन किया। अखिलेश यादव के नेतृत्व में उतरी सपा ने 80 में से 62 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। इसमें से 37 सीटों पर उन्हें जीत मिली। वहीं, 17 सीटें कांग्रेस के पाले में गई थीं। उनमें से 6 सीटें जीतकर पार्टी एक बार फिर प्रदेश में अपना पांव जमाती दिखाई दी। अब सवाल उठता है कि क्या समीकरण? अब बदल गया है ,,तो इसका जवाब है हा ,,इसी लिये विधानसभा चुनाव 2027 अहम माना जा रहा है। सवाल ये भी है कि 7 साल बाद क्या योगी सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबैंसी बनती दिखी? यूपी में लोकसभा चुनाव के बाद ये सवाल खूब गहराए। हालांकि, लोकसभा चुनाव के बाद 10 सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर शानदार प्रदर्शन कर इस सवाल को गायब कर दिया। 10 में से 8 सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार जीते। वहीं पीडीए पॉलिटिक्स वाले फॉर्मूले से जीत का समीकरण तैयार करने वाली समाजवादी पार्टी के पाले में केवल दो सीटें आईं। उपचुनाव में भाजपा-सपा उम्मीदवार आमने-सामने की लड़ाई में खड़े हुए। अन्य विपक्षी दलों ने उपचुनाव से खुद को बाहर रखा। इसके बाद भी सपा अपने मजबूत गढ़ को भी बचाने में कामयाब नहीं हो पाई। इस कारण 2027 का चुनाव अहम हो गया है। सीएम योगी आदित्यनाथ अब कहते दिख रहे हैं कि लड़ाई 80-20 की होने वाली है। मतलब समझाते हुए वे कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी 80 फीसदी भाग पर कब्जा जमाएगी और अन्य दलों के पाले में महज 20 फीसदी सीटें आने वाली हैं। अब अगर बात यूपी चुनाव 2022 की करें तो इस दौरान 80-20 का नारा देने के समय सीएम योगी ने सरकार की योजनाओं का लाभ पाने वाले 80 फीसदी के भाजपा के पाले में आने का दावा किया था।

हालांकि, उस चुनाव में सपा ने 111 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं, भाजपा को 255 सीटों पर जीत मिली। पीडीए पॉलिटिक्स के जरिए सपा की कोशिश 2012 दोहराने की है। वहीं, जातीय राजनीति से इतर भाजपा सनातन समाज को एक पाले में लाने के प्रयास में दिख रही है। इसके जरिए इस बार का 80-20 फॉर्मूला स्थापित करने की अलग तैयारी है। पिछले दिनों जिस प्रकार से सीएम योगी के नारों ने कई विधानसभा चुनावों और यूपी उपचुनाव में अहम भूमिका निभाई, वह 2027 में भी असरदार हो सकती है। तो तय मानिए, अगला चुनाव पीडीए बनाम 80-20 वाला होने जा रहा है।