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महाराष्ट्र में BJP की बड़ी जीत: एकनाथ शिंदे कैसे माने डेप्युटी सीएम बनने को?

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महाराष्ट्र के चुनावी नतीजों के 12 दिन बाद आखिरकार यह स्पष्ट हो गया कि देवेंद्र फणनवीस तीसरी बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे। इसके लिए उन्हें 10 दिनों की कड़ी मेहनत और लगातार संपर्क साधना पड़ा। भाजपा के सहयोगी दलों से बातचीत और दिल्ली की दौड़ों के बीच फणनवीस ने अपना धैर्य बनाए रखा। वह इस बात पर अड़े रहे कि महाराष्ट्र की जनता ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का जनादेश दिया है, और दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। फणनवीस का संयम रंग लाया। सहयोगी दलों, जैसे शिवसेना के एकनाथ शिंदे और एनसीपी के अजित पवार, ने उपमुख्यमंत्री बनने की हामी भर दी, और आखिरकार देवेंद्र फणनवीस को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल गई।

महाराष्ट्र में इस राजनीतिक समीकरण को देखकर कई लोग हैरान हो सकते हैं कि मुख्यमंत्री रह चुके एकनाथ शिंदे ने उपमुख्यमंत्री बनने के लिए कैसे सहमति दे दी। इसे उनका “डिमोशन” कहने वालों की भी कमी नहीं है। लेकिन सच्चाई यह है कि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है।

बिहार में भी ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं। 1970 में कांग्रेस नेता दारोगा प्रसाद राय मुख्यमंत्री थे, लेकिन बाद में वे कैबिनेट मंत्री बने। 1972 में कांग्रेस के ही केदार पांडेय भी मुख्यमंत्री रहे, और बाद की सरकारों में मंत्री पद संभाला। इसी तरह, 1983 से 1985 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे चंद्रशेखर सिंह ने भी बाद में राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में पेट्रोलियम राज्य मंत्री के रूप में काम किया। यह पहली बार था जब कोई मुख्यमंत्री रह चुका व्यक्ति केंद्र में राज्य मंत्री बना था।इसलिए, एकनाथ शिंदे के उपमुख्यमंत्री बनने को “डिमोशन” कहने वालों को राजनीति की मजबूरियों और सियासी व्यवस्थाओं की सच्चाई को भी समझना चाहिए।

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सवाल यह उठता है कि जब महाराष्ट्र में यही फैसला लेना था, तो सरकार बनने में 13 दिन क्यों लगे? आखिर मुख्यमंत्री का चयन इतना लंबा क्यों खिंचा? इसमें कोई शक नहीं कि महायुति को मिली बड़ी जीत में एकनाथ शिंदे के विकास कार्यों और उनकी लोकप्रिय ‘लाड़की बहन योजना’ का बड़ा योगदान रहा। इन्हीं उपलब्धियों के आधार पर शिंदे सीएम पद के लिए अड़े हुए थे।

दूसरी ओर, भाजपा ने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री चेहरा बनाकर चुनाव लड़ा था। फडणवीस ने पूरी ईमानदारी और मेहनत से चुनाव प्रचार किया, जिसमें उन्होंने 64 रैलियां कीं। उनके प्रयासों का नतीजा भी सामने आया, और भाजपा सबसे ज्यादा सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी। महायुति में भाजपा के सहयोगी दलों ने आधी से भी कम सीटें हासिल कीं, जिससे फडणवीस की दावेदारी भी बेहद मजबूत थी।भाजपा चाहती तो अजित पवार की एनसीपी के समर्थन से अकेले सरकार बना सकती थी, लेकिन शिंदे को साथ रखना उसकी राजनीतिक मजबूरी थी। यही वजह है कि सरकार गठन का यह मामला 13 दिनों तक खिंचा।

यह सब जानते हैं कि 2014 और 2019 के विपरीत इस बार भाजपा को अपने दम पर केंद्र में सरकार बनाने का बहुमत नहीं मिला है। एनडीए के सहयोगी दलों के समर्थन से ही भाजपा बहुमत तक पहुंची है, इसलिए हर सांसद की अहमियत है।

महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे की शिवसेना के 7 सांसद हैं। शिंदे ने भाजपा के साथ मिलकर महायुति सरकार बनाने के लिए अपनी पार्टी तोड़ी थी और भाजपा के भरोसेमंद साथी बने। ऐसे सहयोगी को नाराज करना भाजपा के लिए केंद्र में खतरा मोल लेने जैसा होता। यही वजह थी कि भाजपा ने शिंदे को मनाने की हर संभव कोशिश की, जिसमें 10-12 दिन लग गए।शिंदे की सहमति का मतलब है महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति सरकार का स्थायित्व और केंद्र में किसी भी तरह के राजनीतिक अस्थिरता से बचाव की गारंटी।

चुनाव नतीजे आने के बाद भाजपा ने देवेंद्र फणनवीस को मुख्यमंत्री बनाने की इच्छा जताई थी, और इसमें उन्हें आरएसएस का भी पूरा समर्थन मिला। देवेंद्र के संघ से संबंध कितने मजबूत हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चुनाव परिणाम आने के बाद उन्होंने सबसे पहले संघ मुख्यालय को फोन किया।यह भी सच है कि इस बार संघ ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में पूरी सक्रियता दिखाई, जो लोकसभा चुनाव के दौरान थोड़ा कम थी। इसी का असर रहा कि महाविकास अघाड़ी (एमवीए) की लोकप्रियता विधानसभा चुनाव में तेजी से गिर गई। एमवीए इस कदर बिखर गया कि अब उसकी पुनर्गठन की बजाय उसके और टूटने की चर्चा हो रही है।

भाजपा को नई पीढ़ी के नेताओं में देवेंद्र फणनवीस का चेहरा मिल गया है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ, असम में हिमंत बिस्वा सरमा और महाराष्ट्र में देवेंद्र फणनवीस, ये सभी भाजपा के उभरते सितारे हैं। संयोग से इन नेताओं को संघ का पूरा समर्थन भी हासिल है।संघ की दीर्घकालिक चिंता यह है कि भविष्य में भाजपा को नई पीढ़ी के नेताओं की जरूरत होगी। अमित शाह में अभी संभावनाएं बची हैं, लेकिन उम्र के लिहाज से नरेंद्र मोदी धीरे-धीरे रिटायरमेंट की ओर बढ़ रहे हैं। ऐसे में भाजपा को नेतृत्व के नए चेहरों की आवश्यकता होगी, और संघ इस प्रक्रिया में अहम भूमिका निभा रहा है।

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