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बीजेपी की ऐतिहासिक जीत: 62% मुस्लिम आबादी वाली कुंदरकी सीट पर कैसे मारी बाजी?

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महाराष्ट्र में बीजेपी की बड़ी जीत के बीच एक उपचुनाव के नतीजे ने खासा ध्यान खींचा है। उत्तर प्रदेश की कुंदरकी सीट पर बीजेपी की जीत की हर ओर चर्चा हो रही है। बीजेपी प्रत्याशी रामवीर सिंह ने यहां 1,45,000 वोटों के बड़े अंतर से जीत दर्ज की है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि 62% मुस्लिम आबादी वाली इस सीट पर बीजेपी ने बाजी कैसे मारी, इसे लेकर लोग हैरान और उत्सुक हैं।

आमतौर पर माना जाता है कि मुस्लिम वोट बीजेपी के पक्ष में नहीं जाते, लेकिन कुंदरकी विधानसभा सीट के नतीजों ने इस धारणा को बदल दिया है। इस सीट पर भारी मुस्लिम आबादी के बावजूद बीजेपी ने जीत का परचम लहराया है। आजादी के बाद से अब तक यहां बीजेपी को सिर्फ एक बार, 1993 में जीत मिली थी, लेकिन अब यह सीट फिर से बीजेपी के खाते में आ गई है।

यह विधानसभा सीट इसलिए खास है क्योंकि यह प्रदेश अध्यक्ष चौधरी भूपेंद्र सिंह के गृह जिले मुरादाबाद में स्थित है।

साल 2022 में क्या हुआ था?

2022 के विधानसभा चुनाव में कुंदरकी सीट से जियाउर रहमान बर्क ने बीजेपी उम्मीदवार कमल कुमार को 43,162 वोटों से हराया था। इस बार जियाउर रहमान संभल से सांसद बन गए, जिसके चलते कुंदरकी में उपचुनाव हुआ। इस सीट पर कुल 3,83,488 मतदाता हैं, जिनमें सवा दो लाख मुस्लिम, 63,000 एससी-एसटी, 30-30 हजार क्षत्रिय और सैनी समुदाय के मतदाता हैं। यादव मतदाताओं की संख्या करीब 15 हजार है, जबकि बाकी अन्य समुदायों से हैं।

एनडीए गठबंधन ने 7 सीटों पर जीत हासिल की

उत्तर प्रदेश में 9 विधानसभा सीटों के उपचुनाव हुए, जिनमें से 7 सीटें एनडीए के खाते में गईं। इसमें 6 सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की, जबकि मीरापुर सीट पर राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवार ने सफलता पाई। वहीं, करहल और सीसामऊ सीटों पर सपा ने कब्जा जमाया।

कुंदरकी विधानसभा सीट पर 1996 के बाद से कोई भी हिंदू विधायक नहीं चुना गया

1996 अकबर हुसैन
2002 मोहम्मद रिज़वान
2007 अकबर हुसैन
2012 मोहम्मद रिज़वान
2017 मोहम्मद रिज़वान
2022 जिया उर रहमान बर्क

कुंदरकी में जब बीजेपी के प्रत्याशी की जीत की चर्चा चारों ओर है तो ऐसे में यह जानना जरूरी होगा कि यहां बीजेपी के प्रत्याशी रामवीर सिंह को जीत कैसे मिली? आईए, आपको ऐसे पांच बड़े कारण गिनाते हैं, जिससे बीजेपी ने बहुत कठिन माने जा रहे इस उपचुनाव को फतेह कर लिया।

1- मुस्लिम मतदाताओं को चुनावी जिम्मेदारी सौपी

बीजेपी की कुंदरकी में जीत का एक बड़ा कारण मुस्लिम नेताओं को चुनावी जिम्मेदारी देना था। इस सीट पर 62% मुस्लिम मतदाता हैं, इसलिए बीजेपी ने इस समुदाय के नेताओं को पन्ना प्रमुख बनाया। पन्ना प्रमुख वह होता है जो वोटर लिस्ट के हर पन्ने का प्रमुख होता है और उसका काम मतदाताओं से संपर्क करना और उन्हें बीजेपी के पक्ष में वोट करने के लिए प्रेरित करना होता है। बीजेपी के कई बड़े नेता जैसे जेपी नड्डा और अमित शाह भी इस जिम्मेदारी को निभा चुके हैं।

बीजेपी ने मुस्लिम बहुल गांवों में इस समुदाय के प्रभावशाली नेताओं को पन्ना प्रमुख बनाया और उन्होंने मुस्लिम मतदाताओं को बीजेपी के पक्ष में मतदान करने के लिए प्रेरित किया। चुनाव प्रचार के दौरान रामवीर सिंह और बीजेपी ने मुस्लिम समुदाय से लगातार संपर्क बनाए रखा और अल्पसंख्यक सम्मेलन आयोजित किए। इसमें डिप्टी सीएम बृजेश पाठक और बीजेपी के अन्य बड़े नेता भी शामिल हुए। इस चुनाव में ‘मुसलमानों के बीच दूरी है, ना खाई है, रामवीर हमारा भाई है’ जैसे नारे भी चले। चुनावी मंचों पर रामवीर सिंह का मुस्लिम टोपी पहनकर बैठना चर्चा का विषय बना और उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं।

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2- जनता के बीच लगातार सक्रिय रहे रामवीर सिंह

बीजेपी की जीत का दूसरा बड़ा कारण रामवीर सिंह की जनता के बीच लगातार सक्रियता है। हालांकि, रामवीर सिंह इस विधानसभा सीट पर दो बार चुनाव हार चुके थे, लेकिन उन्होंने हार के बाद भी जनता के बीच अपनी उपस्थिति बनाए रखी। वह मुस्लिम मतदाताओं तक पहुंचे और उन्हें भरोसा दिलाया कि बीजेपी और योगी सरकार उनके साथ खड़ी है। उनकी इस मेहनत का परिणाम यह हुआ कि मुस्लिम मतदाताओं ने भी बीजेपी के पक्ष में मतदान किया।

3- मतदाताओं में विभाजन होना

तीसरा महत्वपूर्ण कारण यह है कि कुंदरकी सीट पर चुनाव बीजेपी बनाम सपा के बजाय रामवीर बनाम हाजी रिजवान बन गया था, जिससे मतदाताओं का ध्रुवीकरण हो गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के “बंटेंगे तो कटेंगे” नारे के चलते हिंदू मतदाताओं में एकजुटता आई। कुंदरकी में बीजेपी के अलावा बाकी सभी पार्टियों ने मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था, और निर्दलीय उम्मीदवार भी मुस्लिम समुदाय से थे।

सपा के उम्मीदवार हाजी रिजवान इस सीट से तीन बार विधायक रह चुके थे, लेकिन यहां पर्याप्त विकास न हो पाने के कारण कई मतदाताओं ने उनका साथ नहीं दिया। यही वजह है कि सपा के पारंपरिक समर्थकों ने भी उन्हें वोट नहीं दिया।

4- चुनाव प्रचार में कांग्रेस का कम सक्रियता दिखी

रामवीर सिंह की जीत का चौथा बड़ा कारण यह है कि कांग्रेस ने इस उपचुनाव में खुद को काफी हद तक अलग रखा। हालांकि कांग्रेस इस सीट से चुनाव लड़ना चाहती थी, लेकिन गठबंधन के चलते यह सीट सपा के पास चली गई। हाजी रिजवान को कांग्रेस के नेताओं का खुला समर्थन नहीं मिला, जिसका सीधा नुकसान सपा को हुआ और बीजेपी को इसका फायदा हुआ।

5- समाजवादी पार्टी के अंदर की आपसी कलह

रामवीर सिंह की जीत का पांचवां बड़ा कारण समाजवादी पार्टी के अंदर की आपसी लड़ाई है। मुरादाबाद जिले में सपा के कई नेताओं के बीच संघर्ष चल रहा था, जिसके कारण जिला कार्यकारिणी का गठन भी नहीं हो पाया। चुनाव के दौरान देखा गया कि सपा के बड़े नेता मंच पर एक साथ दिखे, लेकिन प्रचार के दौरान उन्होंने उम्मीदवार के पक्ष में ज्यादा सक्रियता नहीं दिखाई। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने नेताओं को यह चेतावनी दी थी कि वे मिलकर प्रचार करें, लेकिन सपा अंदरूनी बंटवारे से जूझ रही थी, जिसका सीधा फायदा बीजेपी के उम्मीदवार को मिला।

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