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हेमंत सोरेन के विकास मॉडल ने झारखंड में रचा इतिहास, इंडिया ब्लॉक का जलवा

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झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में इंडिया ब्लॉक ने जबरदस्त जीत दर्ज की है। 81 सीटों वाली विधानसभा में जेएमएम को 34, कांग्रेस को 16, और आरजेडी को 4 सीटें मिली हैं। वहीं, बड़े-बड़े दावे करने वाली बीजेपी सिर्फ 21 सीटों पर सिमट गई। ये नतीजे महज संयोग नहीं हैं, बल्कि झारखंड में इंडिया ब्लॉक द्वारा किए गए प्रभावी कामों का ही नतीजा है। जनता ने उनके विकास और जनसेवा के प्रयासों को सराहते हुए अपना भरोसा जताया और जीत का इनाम दिया।

इंडिया ब्लॉक ने पूरी कोशिश की कि समाज के आखिरी व्यक्ति तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचे। भूखमरी की समस्या खत्म हो, और स्वास्थ्य सेवाओं में कोई कमी न हो। कोरोना महामारी के दौरान झारखंड सरकार ने जिस तरह से हालात संभाले, लोगों की जिंदगी और जीविका बचाने के लिए काम किया, उसे जनता ने खूब सराहा।

कोरोना काल में लौटे मजदूरों को झारखंड सरकार ने रोजगार मुहैया कराया और यह सुनिश्चित किया कि भूख से किसी की मौत न हो। पिछली डबल इंजन सरकार के पांच वर्षों के दौरान, जब 24 लोग भूख से मर गए थे, उस दर्दनाक स्थिति को दोहराने से बचने के लिए सरकार ने हर संभव कदम उठाए।

झारखंड के लोगों ने सरकार के काम को बेहद गंभीरता से लिया। हमने हमेशा आम जनता को प्राथमिकता दी और उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए काम किया। इसके तहत, हमनें गांवों की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए सर्वजन पेंशन योजना शुरू की और विधवा पेंशन को सशक्त बनाने की व्यवस्था की। इसके अलावा, मुख्यमंत्री एक्सीलेंस स्कूलों की शुरुआत कर शिक्षा व्यवस्था में सुधार किया और बेहतर पढ़ाई के लिए जरूरी कदम उठाए।

इसके अलावा, हमने मइया सम्मान योजना के जरिए महिलाओं को सम्मान देने की पहल की। इस योजना का उद्देश्य महिलाओं को आत्मसम्मान और सशक्त बनाने का था, और इसका परिणाम यह हुआ कि लोगों ने हमारी नीयत और कार्यों पर विश्वास किया, यह समझते हुए कि हम जो कहते हैं, वह करते भी हैं। और आज इसका नतीजा आपके सामने है।

आपने देखा कि किस तरह मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर आरोप लगाकर उन्हें जेल भेज दिया गया और पांच महीने तक उन्हें बंदी रखा गया। इस कठिन दौर में, कल्पना सोरेन जैसी नेतृत्व क्षमता ने उभरकर राजनीति में अपना स्थान बनाया।

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उसके बाद हालात धीरे-धीरे बदलते गए। हमने जिस तरह से स्थिति को संभाला और आगे बढ़ने की कोशिश की, वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी ने निरर्थक बातें की और वैमनस्य फैलाने की कोशिश की। वे दरार डालने की कोशिश करते रहे, जबकि हम हमेशा प्यार और एकता का संदेश देते रहे। हम लोगों को जोड़ने और एकजुट करने में जुटे रहे।

बीजेपी ने बार-बार बांग्लादेश का मुद्दा उठाकर झारखंड के लोगों को आहत किया। आदिवासियों को बांग्लादेशी कहकर अपमानित किया गया, और उनकी बेटियों का भी अपमान किया गया। झारखंड के लोगों को यह सब बिल्कुल नागवार गुजरा। बाहर से आए लोग झारखंड को बदनाम करने और उसकी छवि को हिंदुस्तान के सामने खराब करने की कोशिश कर रहे थे। हमने इन सभी मुद्दों पर डटकर लड़ाई लड़ी और झारखंड की अस्मिता की रक्षा की।

राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान छह दिन झारखंड में बिताए। जिस दिन हेमंत सोरेन गिरफ्तार हुए, अगले ही दिन राहुल गांधी झारखंड पहुंचे। जाते-जाते उन्होंने कल्पना सोरेन से मुलाकात की, उनका हौसला बढ़ाया और कहा कि ऐसी कठिन परिस्थिति में आगे बढ़ें और अन्याय के खिलाफ न्याय की लड़ाई लड़ें।

उसके बाद जब न्याय की लड़ाई शुरू हुई, तो हम न्याय लेकर ही रुके। पांच महीने बाद हेमंत सोरेन को जमानत पर रिहा किया गया, और माननीय न्यायालय की टिप्पणियों ने हमारे हौसले को और बढ़ाया। इससे हमें सीख मिली कि अगर आप ईमानदारी से जनता को केंद्र में रखकर काम करेंगे, तो कोई भी ताकत आपको जनता से दूर नहीं कर सकती।

झारखंड चुनावों में भी यही हुआ। राहुल गांधी ने जो संदेश दिया था, “नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोलनी है,” वह पूरी तरह सफल रहा। इस चुनाव ने देशभर में एक मिसाल कायम की। पहली बार झारखंड में एंटी-इनकम्बेंसी नहीं बल्कि प्रो-इनकम्बेंसी की लहर थी, और इंडिया ब्लॉक ने फिर से सत्ता में वापसी की। यह साबित करता है कि इंडिया ब्लॉक जो कहता है, उसे करता भी है, और उसका असर जनता के मिजाज पर साफ नजर आता है। अगर ईवीएम की जगह बैलेट पेपर से चुनाव होते, तो नतीजे और बेहतर हो सकते थे।

बीजेपी की हार के कारण भी स्पष्ट हैं। वे मुद्दों पर बात करने के बजाय इधर-उधर की बातें करती रहीं। उन्होंने बांग्लादेशी और आदिवासी को एक साथ जोड़कर गलत संदेश दिया, जबकि आदिवासी अपनी पहचान में अद्वितीय हैं। इसके अलावा, बीजेपी के प्रचार के लिए दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री और मंत्री झारखंड आए, लेकिन उन्होंने राज्य की सामाजिक संरचना को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। वे सिर्फ दलबदलुओं पर भरोसा करके चुनाव लड़ते रह गए, और जनता ने उनकी मंशा भांपकर उन्हें नकार दिया।

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