हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा। जीत के करीब पहुंचकर भी कांग्रेस सिर्फ हाथ मलती रह गई, जबकि बीजेपी ने बाजी मारते हुए जीत की हैट्रिक लगा दी। हरियाणा की हार का असर सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका दर्द कांग्रेस को कई और जगहों पर भी महसूस होगा।मंगलवार को जैसे ही नतीजे सामने आए, कांग्रेस ने न सिर्फ हरियाणा की सत्ता गंवाई, बल्कि अपने सहयोगियों से सीट शेयरिंग पर मोलभाव की ताकत भी खो दी। जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के नतीजों ने दो बातें साफ कर दीं – पहली, कांग्रेस को अब भी अपने दम पर आगे बढ़ने के लिए समर्थन की जरूरत है। दूसरी, बीजेपी के साथ सीधी टक्कर में कांग्रेस बार-बार कमजोर साबित हो रही है।
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हरियाणा की हार ने कांग्रेस की राजनीतिक योजनाओं पर पानी फेर दिया। इसके बाद के विधानसभा चुनावों, जैसे महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली, पर भी इन नतीजों का असर दिखेगा। हरियाणा की हार के बाद कांग्रेस के लिए आगे की राह मुश्किल हो गई है।जम्मू-कश्मीर में भी कांग्रेस सत्ता में नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के सहारे ही पहुंच पाई है। एनसी ने 51 में से 42 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि कांग्रेस सिर्फ 6 सीटों पर सिमट गई। इन नतीजों से यह स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस अब भी अपने पैरों पर खड़े होने में सक्षम नहीं है और उसे अन्य दलों का सहारा चाहिए।
हरियाणा की हार ने कांग्रेस को यह सिखाया कि बीजेपी के खिलाफ सीधी लड़ाई में अब भी उसे कामयाबी नहीं मिल पा रही है। 10 साल की एंटी-इन्कंबेंसी के बावजूद कांग्रेस बीजेपी को हराने में असफल रही। यही हाल अन्य राज्यों जैसे मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, और राजस्थान में भी रहा, जहां कांग्रेस बार-बार बीजेपी से मात खा चुकी है।अब जब उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं, कांग्रेस के लिए वहां भी राह आसान नहीं है। बिना अखिलेश यादव के समर्थन के कांग्रेस के लिए एक भी सीट जीतना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि यूपी में कांग्रेस के पास न तो जनाधार है और न ही कोई बड़ा चेहरा।दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हरियाणा के नतीजों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि चुनाव को कभी भी हल्के में नहीं लेना चाहिए। हर चुनाव और हर सीट महत्वपूर्ण होती है, और अति आत्मविश्वास से बचना जरूरी है।