इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा की श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में एक अंतरिम फैसला सुनाते हुए पुराणों की प्रमाणिकता पर सवाल खड़ा कर दिया, जिससे देशभर में तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा कि पुराणों में लिखी बातें सुनी-सुनाई कहानियों पर आधारित होती हैं, और इन्हें कानूनी रूप से प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं माना जा सकता। अदालत ने इसी आधार पर देवी श्री जी राधा रानी को पक्षकार बनाए जाने की याचिका खारिज कर दी।
यह फैसला जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र की सिंगल बेंच द्वारा 23 मई को सुनाया गया, जिसमें कहा गया कि 13.37 एकड़ विवादित जमीन पर राधा रानी का कोई कानूनी दावा साबित नहीं होता। अधिवक्ता रीना एन सिंह की ओर से यह याचिका दायर की गई थी, जिसमें दावा किया गया था कि पुराणों और शास्त्रों में राधा रानी को श्रीकृष्ण की आत्मा और उनकी पहली पत्नी बताया गया है।
कोर्ट ने क्या कहा?
पौराणिक कथाएं कथा-साहित्य का हिस्सा होती हैं, जिनका आधार आमतौर पर प्रत्यक्ष अनुभव या गवाही नहीं होता। इसलिए इन्हें अदालत में कानूनी साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।”
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याचिका क्यों हुई खारिज?
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राधा रानी का विवादित स्थल से सीधा संबंध साबित करने के लिए पुख्ता कानूनी साक्ष्य जरूरी हैं, सिर्फ धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं के आधार पर उन्हें पक्षकार नहीं बनाया जा सकता।
फैसले के खिलाफ बढ़ते विरोध
इस फैसले को लेकर संत समाज और धार्मिक संगठनों में नाराजगी है। निरंजनी अखाड़े के पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि ने कहा ,पुराणों की बातों को किस्से-कहानियां कहकर खारिज करना गलत है। ये पूरी तरह प्रमाणिक हैं।
अधिवक्ता रीना एन सिंह ने भी फैसले पर असहमति जताई है और कहा कि वह इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगी। उनका तर्क है कि अयोध्या मामले में भी अदालतों ने पुराणों और धार्मिक ग्रंथों को मान्यता दी थी, ऐसे में यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की मिसालों की अवहेलना है।
क्या है मामला?
मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर 18 याचिकाएं हाईकोर्ट में लंबित हैं। इन्हीं में एक याचिका में राधा रानी को भगवान कृष्ण के साथ संयुक्त अधिकार वाली देवता मानते हुए पक्षकार बनाए जाने की अपील की गई थी, जिसे अब खारिज कर दिया गया है।