देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भारत के 14वें प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का गुरुवार 26 दिसंबर को नई दिल्ली में निधन हो गया है। वह 92 वर्ष के थे डॉ मनमोहन सिंह न केवल कांग्रेस के कद्दावर नेता थे बल्कि उन्हें भारत में आर्थिक उदारीकरण और आर्थिक सुधारों का जनक भी कहा जाता है.

प्रधानमंत्री रहने के दौरान डॉक्टर मनमोहन सिंह ने कई साहसिक फैसले लिए उनमें से एक फैसला ऐसा है जो अगर उन्होंने नहीं लिया होता तो आज देश कंगाली से जूझ रहा होता.बात 1991 की है जब वित्त मंत्री के पद पर डॉ मनमोहन सिंह थे. उस समय पीवी नरसिम्हा राव ने डॉ मनमोहन सिंह की काबिलियत को देखा था और उन्हें वित्त मंत्री बनाया. उस समय देश अपनी अर्थव्यवस्था को नहीं संभाल पा रहा था और देश के पास महज 15 दिन का ही पैसा बचा था. 15 दिन के बाद देश विदेशों से कोई भी चीज खरीद नहीं सकता था. चाहे वह दवाई हो, पेट्रोलियम हो, इलेक्ट्रॉनिक और भी बहुत कुछ. इसके बाद भारत ने आईएमएफ और यूरोपीय देशों से लोन की मांग की. यूरोपीय देशों और आईएमएफ ने भारत के पैसों के बदले शर्त रखी कि वह देश में विदेशी कंपनियों को आने दें. आईएमएफ और यूरोपीय देशों का कहना था कि भारत में न केवल विदेशी कंपनियां काम करेगी बल्कि प्राइवेट और सरकारी कंपनियां भी चलेगी. सभी अपना काम खुलकर कर सकते है. भारत सरकार ने इसे मंजूरी दे दी और यही भारत के विकास का सबसे बड़ा कारण बना. उस दौरान देश की सरकार LPG (Liberalization, Privatization and Globalization) नियम लेकर आई. भारत सरकार ने न केवल विदेशी कंपनियों को बल्कि प्राइवेट कंपनियों को भी काम करने का मौका दिया.

भारत सरकार ने उदारीकरण को बढ़ावा दिया, प्राइवेटाइजेशन को बढ़ावा दिया और इसके बाद ग्लोबलाइजेशन यानी कि भूमंडलीकरण या कहें वैश्वीकरण को भी मौका दिया. कुल मिलाकर इसके मतलब ये था कि सरकार विदेशी कंपनियों और प्राइवेट कंपनियों के साथ लिबरल रहेगी. यानी कि कोई लड़ाई झगड़ा और भेदभाव नहीं करेगी. हालांकि, भारत में उनके सामने एक शर्त यह भी रखी की कोई भी बाहरी कंपनी भारत देश में सेना से जुड़ा कोई सामान नहीं बन सकती, अंतरिक्ष से जुड़ा कोई सामान नहीं बन सकती, रेलवे से जुड़ा काम, पेट्रोलियम का काम नहीं कर सकती.