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इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर यादव के खिलाफ INDIA गठबंधन संसद में महाभियोग प्रस्ताव!

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न्याय की मूर्ति के रूप में अधिकृत जजों की चर्चाएं इस समय खूब चल रही है, न्याय से ज्यादा इन जजों की चर्चा उनके विवादित बयानों को लेकर चल रही इस विवाद में तड़का राजनीतिक दल भी लगा रहे और यूपी के जज का मामला देश के सबसे बड़े सदन तक पहुंच गया है, विपक्ष भी सरकार पर खूब हमलावर है।

बात हो रही जस्टिस शेखर कुमार यादव की जो इलाहाबाद हाई कोर्ट में जज हैं, अभी हाल ही में विश्व हिन्दू परिषद के एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे। इस मौक़े पर उन्होंने यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) के मुद्दे पर कहा कि हिन्दुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यक के अनुसार ही देश चलेगा,जस्टिस शेखर यादव का कहना था कि एक से ज़्यादा पत्नी रखने, तीन तलाक़ और हलाला के लिए कोई बहाना नहीं है और अब ये प्रथाएं नहीं चलेंगी। जस्टिस यादव की इस स्पीच से जुड़े वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हैं और अब उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है।

इन्हीं आलोचनाओं के बीच अब इस मामले में विपक्षी खेमे ने बड़ा हमला बोलते हुए राज्यसभा में विपक्षी दल इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस शेखर कुमार यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए नोटिस देने की तैयारी कर रहे हैं। पिछले सप्ताह विश्व हिंदू परिषद द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने मुसलमानों के बारे में विवादास्पद और अपमानजनक टिप्पणी की थी। अपुष्ट माध्यमों से यह जानकारी मिली है कि विभिन्न दलों के 36 विपक्षी सांसदों ने पहले ही इस याचिका पर हस्ताक्षर कर दिए हैं, जिसकी शुरुआत सपा समर्थित राज्यसभा सांसद और अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने की है। विपक्ष अधिक हस्ताक्षर जुटाने के बाद इसे गुरुवार को आगे बढ़ा सकता है। राज्यसभा में इंडिया ब्लॉक के 85 सांसद हैं।

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जिन लोगों ने पहले ही हस्ताक्षर कर दिए हैं उनमें कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह, जयराम रमेश और विवेक तन्खा शामिल हैं। आम आदमी पार्टी के संजय सिंह, टीएमसी के साकेत गोखले और सागरिका घोष। राजद के मनोज कुमार झा, सपा के जावेद अली खान, सीपीआई (एम) के जॉन ब्रिटास और सीपीआई के संदोश कुमार का नाम है, हालांकि इसमें भी विपक्ष के सामने एक पेंच फंसता नजर आ रहा है जिसमें,दोनों सदनों में एनडीए को प्राप्त बहुमत को देखते हुए, महाभियोग प्रस्ताव के लोकसभा या राज्यसभा में पारित होने की संभावना नहीं है।

खबर यह भी है कि विपक्ष जस्टिस यादव के विवादास्पद भाषण के वीडियो क्लिप और प्रतिलेख के साथ-साथ इस पर समाचार लेखों के लिंक भी संलग्न करेंगे।

अब तक की अगर बात करे तो अब तक हाई कोर्ट के न्यायाधीशों पर महाभियोग लगाने के चार प्रयास और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने के दो प्रयास हो चुके हैं, जिनमें से आखिरी प्रयास 2018 में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ किया गया था। इनमें से कोई भी प्रस्ताव पूरी प्रक्रिया को पारित नहीं कर सका।

इस पूरे मुद्दे की शुरुआत रविवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट परिसर में विश्व हिंदू परिषद के कानूनी प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जस्टिस यादव ने समान नागरिक संहिता का पुरजोर समर्थन करते हुए मुसलमानों पर निशाना साधा था,लगभग 34 मिनट की इस स्पीच में शाह बानो केस का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि तीन तलाक़ बिल्कुल ग़लत है, लेकिन तत्कालीन सरकार को झुकना पड़ा था। जस्टिस शेखर यादव कहते हैं, “जिस नारी को हमारे यहां देवी का दर्जा दिया जाता है, आप उसका निरादर नहीं कर सकते हैं. आप यह नहीं कह सकते हैं कि हमारे यहां तो चार पत्नियां रखने का अधिकार है, हमारे यहां तो हलाला का अधिकार है, हमारे यहां तो तीन तलाक़ बोलने का अधिकार है। ये सब नहीं चलने वाला है।”

स्पीच के दौरान जस्टिस यादव ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की जमकर आलोचना की। उनका कहना था कि हमें किसी का कष्ट देखकर कष्ट होता है, लेकिन आपके यहां ऐसा नहीं होता है। उन्होंने कहा, “ये कहने में बिल्कुल गुरेज़ नहीं है कि ये हिन्दुस्तान है। हिन्दुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यक के अनुसार ही देश चलेगा। यही क़ानून है। आप यह भी नहीं कह सकते कि हाई कोर्ट के जज होकर ऐसा बोल रहे हैं। क़ानून तो भैय्या बहुसंख्यक से ही चलता है। परिवार में भी देखिए, समाज में भी देखिए। जहां पर अधिक लोग होते हैं, जो कहते हैं उसी को माना जाता है।”

जस्टिस शेखर यादव ने ये भी कहा कि ‘कठमुल्ले’ देश के लिए घातक हैं। जस्टिस यादव कहते हैं, “जो कठमुल्ला हैं, ‘शब्द’ ग़लत है लेकिन कहने में गुरेज़ नहीं है, क्योंकि वो देश के लिए घातक हैं। जनता को बहकाने वाले लोग हैं। देश आगे न बढ़े इस प्रकार के लोग हैं। उनसे सावधान रहने की ज़रूरत है।”

कार्यक्रम के दौरान उन्होंने अयोध्या में मौजूद राम मंदिर पर भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, “कभी कल्पना की थी क्या आपने कि हम राम मंदिर को अपनी आंखों के सामने देखेंगे, लेकिन देखा है आपने। हमारे पूर्वज तमाम बलिदान देकर चले गए इसी आस में कि हम रामलला का भव्य मंदिर बनते देखेंगे लेकिन वो देख नहीं पाए, किया उन्होंने, लेकिन देख आज हम रहे हैं।” स्पीच के आख़िर में उन्होंने कहा कि उन्हें विश्वास है कि यूसीसी बिल को लोग जल्दी ही देखेंगे।

अब इस महाभियोग के बारे में अगर बात करे तो संविधान के अनुच्छेद 124 (4) और अनुच्छेद 124 (5) के साथ जज (जांच) अधिनियम की धारा 3 (1) (बी) के तहत जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की मांग की गई है। न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 के अनुसार, किसी न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत अगर लोकसभा में पेश की जाती है तो कम से कम 100 सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित प्रस्ताव के माध्यम से की जानी चाहिए और अगर राज्यसभा में पेश की जाती है तो 50 सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित प्रस्ताव के माध्यम से की जानी चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 124 (4) में कहा गया है कि महाभियोग के प्रस्ताव को उस सदन की कुल सदस्यता के बहुमत द्वारा तथा सदन के उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा समर्थित होना चाहिए। यह लोकसभा और राज्यसभा दोनों के लिए जरूरी है।

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