दिल्ली चुनाव के नतीजों के बीच एक बड़ा बयान आया है, और वो किसी और का नहीं बल्कि अरविंद केजरीवाल के गुरु रहे अन्ना हजारे का है। अन्ना ने साफ कहा कि केजरीवाल पहले अच्छे इंसान थे, लेकिन अब गलत राह पर चल पड़े हैं। उन्होंने कहा कि जिस शराब नीति के खिलाफ उन्होंने आंदोलन किया था, केजरीवाल उसी रास्ते पर चलने लगे।
दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी का सफर किसी सपने से कम नहीं था, लेकिन “शीशमहल” और “शराब घोटाले” ने उसे ऐसी पटखनी दी कि अब पार्टी दूसरे नंबर पर खिसक गई है।
AAP का सुनहरा सफर: 2012 से 2020 तक
केजरीवाल ने 26 नवंबर 2012 को राजनीति में कदम रखा। उनका कहना था, “हमें राजनीति नहीं आती, लेकिन भ्रष्टाचार और महंगाई से लड़ने के लिए उतरना पड़ा।” इस बयान ने जनता को उम्मीदों से भर दिया और 2013 में AAP को 28 सीटें मिल गईं।
2015 में AAP ने इतिहास रच दिया। 67 सीटों के साथ केजरीवाल ने दिल्ली में अपना परचम लहरा दिया। यह जीत इतनी धमाकेदार थी कि पार्टी ने राष्ट्रीय राजनीति में भी अपनी जगह बनानी शुरू कर दी।
2020 में भी AAP का जादू बरकरार रहा, हालांकि सीटें 67 से घटकर 48 रह गईं, फिर भी जनता का भरोसा बना रहा।
शराब घोटाले से शुरू हुई हार की कहानी
AAP को लगने लगा था कि वो अजेय है, लेकिन शराब नीति ने पार्टी की सियासत को डगमगा दिया।याद कीजिए वो वक्त जब “एक के साथ एक बोतल फ्री” की स्कीम चल रही थी। दिल्ली में हर जगह इसकी चर्चा थी। शुरुआत में लोगों को यह स्कीम पसंद आई, लेकिन फिर सवाल उठने लगे।
CAG रिपोर्ट लीक हुई और उसमें दावा किया गया कि शराब नीति से दिल्ली को 2,000 करोड़ का नुकसान हुआ। फिर केजरीवाल समेत कई बड़े नेता जेल चले गए। भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते AAP डिफेंसिव हो गई और बीजेपी-कांग्रेस ने इस मौके को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
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इसके बाद आया शीशमहल का मामला। बीजेपी और कांग्रेस ने केजरीवाल के आलीशान सीएम हाउस को “शीशमहल” करार दिया। बीजेपी ने इसे लेकर ताबड़तोड़ पोस्टर और वीडियो जारी किए। रिपोर्ट्स में बताया गया कि इस घर पर 45 करोड़ रुपये खर्च हुए और इसे लक्जरी होटल की तरह बनाया गया।
इस दौरान बीजेपी जनता को यह भी समझाने में सफल रही कि दिल्ली में पानी और सफाई की बदहाल व्यवस्था के बीच AAP के नेता ऐश कर रहे हैं। MCD में AAP की सरकार थी, लेकिन दिल्ली कूड़े के ढेर में तब्दील हो गई थी।
निष्कर्ष: “आप” के लिए सबक या अंत की शुरुआत?
जिस पार्टी ने ईमानदारी और पारदर्शिता का वादा किया था, वही भ्रष्टाचार और वीआईपी कल्चर में फंस गई। “शराब नीति” और “शीशमहल” के मुद्दों ने पार्टी की छवि बिगाड़ दी।अब सवाल यह है कि क्या केजरीवाल इस झटके से उबर पाएंगे? या फिर AAP का राजनीतिक ग्राफ धीरे-धीरे और नीचे जाएगा?