उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है वैसे वैसे सभी पार्टियों अपनी अपनी तैयारियों में जुटी हुई है ,,सभी पार्टियों की नजर इस वक्त सिर्फ सत्ता की कुर्सी हासिल करने व अपनी सरकार बनाने की हैं .इसलिए कोई भी पार्टी किसी भी तरीके की कोई कोर कसर छोड़ना नहीं चाहती है ,लेकिन इन सबके इतर आज हम बात करेंगे सत्ता में काबिज पार्टी भारतीय जनता पार्टी की और उनके डिप्टी सीएम बृजेश पाठक की .बृजेश पाठक की बात इसलिए भी हम करेंगे क्योंकि उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा सूबा है और बृजेश पाठक भारतीय जनता पार्टी की तरफ से ब्राह्मणों को रिझाने के लिए सबसे बड़े चेहरे हैं .

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार भी ब्राह्मण मतदाता एक मजबूत वोट बैंक के रूप में देखा जा रहा है। यही कारण है कि राजनीतिक दलों में हमेशा ब्राह्मणों को अपने साथ लाने होड़ मची रहती है।,,उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण मतदाता करीब 12 से 14 प्रतिशत माना जाता है। इसमें करीब 115 सीटें ऐसी हैं, जिनमें ब्राह्मण मतदाताओं का अच्छा प्रभाव है। करीब 15 फीसदी से ज्यादा ब्राह्णण वोट वाले 12 जिले माने जाते हैं। इनमें बलरामपुर, बस्ती, संत कबीर नगर, महाराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, जौनपुर, अमेठी, वाराणसी, चंदौली, कानपुर, इलाहाबाद प्रमुख हैं।यही नहीं पूर्वी से लेकर मध्य, बुंदेलखंड और पश्चिम उत्तर प्रदेश की करीब 100 सीटों पर ब्राह्मण मतदाता भले ही संख्या में ज्यादा न हों लेकिन मुखर होने के कारण सियासी माहौल बनाने/बिगाड़ने का माद्दा रखते हैं।इसलिये सत्ता में काबिज भारतीय जनता पार्टी हमेशा अपने दो डिप्टी सीएम में से एक ब्राह्मण चेहरा को तरजीह देती हैं .पहले दिनेश शर्मा और बार बार बृजेश पाठक ,,लेकिन अब सवाल ये उठता है कि क्या पहली बार की तरह 27 चुनाव में भी बीजेपी एक बार फिर दिनेश शर्मा की तरह बृजेश पाठक को भी दरकिनार करके किसी अन्य ब्राहण चेहरे को डिप्टी सीएम के पद पर बैठायेगी ,जी है ये बड़ा सवाल है इस वक्त सियासी गलियारों में ,माना जा रहा कि बीजेपी हमेशा कुछ नया प्रयोग करती है ,,बीजेपी के इस नये प्रयोग में क्या वाकई पिछले बार की तरह इस बार भी कोई नया ब्राहणा चेहरा सामने आयेगा ,,, तो इसका जवाब है हो भी सकता है और नहीं भी ,लेकिन इस सवाल का जवाब सुनंने और जानने के लिए सबसे पहले आपको ये जानना पड़ेगा कि आखिर कैसे और किन वजहों से बीजेपी ने दिनेश शर्मा को डिप्टी सीएम के पद हटाया था ,तो सबसे पहले जान लीजिये कि सब कुछ परफॉर्मेंस और राजनीतिक गुणा गणित से जुड़ा है। इसके लिए पिछले चुनावों को याद करना होगा। तब जब 15 साल बाद यूपी के सत्ता में बीजेपी की वापसी हुई थी। योगी आदित्यनाथ को सीएम बनाया गया था। हालांकि, जातिगत समीकरणों का संतुलन साधने के लिए उनके साथ दो डिप्टी सीएम को भी गद्दी पर बैठाया गया था। इनमें एक थे केशव प्रसाद मौर्य और दूसरे थे दिनेश शर्मा। केशव प्रसाद मौर्य बीजेपी का बड़ा ओबीसी चेहरा माने जाते हैं। वहीं, लखनऊ के मेयर रहे दिनेश शर्मा को ब्राह्मण चेहरे के तौर पर 2017 में योगी सरकार में जगह मिली थी।तब ब्रजेश पाठक का सवाल है तो वह 2017 के विधानसभा चुनाव से ऐन पहले बीजेपी में शामिल हुए थे। इसके पहले वो बहुजन समाज पार्टी (BSP) में थे।

योगी सरकार बनने के बाद पाठक के कंधों पर न्याय और कानून का विभाग सौंपा गया था। इस दौरान लगातार उनकी छवि ब्राह्मण नेता के तौर पर मजबूत होती गई। बीजेपी के आलाकमान को उनके काम करने का तरीका भी पसंद आया। योगी सरकार की सत्ता में वापसी होने पर उन्हें दिनेश शर्मा की जगह डिप्टी सीएम की कुर्सी पर बैठाया गया।दूसरी तरफ दिनेश शर्मा डिप्टी सीएम के तौर पर अपनी वैसी आक्रामक छवि नहीं बना पाए जिसकी उनसे अपेक्षा थी। चुनावी कैंपेन के दौरान योगी सरकार पर ब्राह्मण विरोधी होने के आरोप लगे। विपक्ष ने उन पर तीखा हमला किया। यह अलग बात है कि दिनेश शर्मा इसका जवाब देने में नाकाम साबित हुए। बीजेपी को दिनेश शर्मा के बजाय ब्रजेश पाठक में वो खूबियां दिखाई दीं। वह ब्राह्मणों के मुद्दों पर ज्यादा आक्रामक रहे हैं।इसके आलावा सीएम योगी आदित्यनाथ पर तब भी जुबानी हमले हुए थे जब माफिया विकास दुबे का एनकाउंटर हुआ था। तब माहौल बनाने की कोशिश की गई थी कि योगी आदित्यनाथ ब्राह्मण विरोधी हैं। उस वक्त ब्रजेश पाठक योगी के समर्थन में खुलकर खड़े हुए थे।दिनेश शर्मा उतना आक्रामक और पार्टी का बचाव नहीं कर पाये थे लेकिन बृजेश उस वक्त मैदान में डटे हुए थे .