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ईरान पर भीषण बम बारी ,57 मुस्लिम देश मौन , वजह जानकर आप के उड़ जायेंगे होश

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इज़रायल ईरान पर हमला कर रहा है, लेकिन 57 मुस्लिम देश इजरायल के इस हमले पर चुप क्यों हैं?”ये सवाल कई लोगों के मन में चल रहा ,आज हम इन्ही सवालों का जवाब आपको देंगे कि आखिर 57 मुस्लिम देश ईरान का साथ इस लड़ाई में साथ क्यों नहीं आ रहें हैं ,तो इस सवाल का कोई एक लाइन में जवाब नहीं है, क्योंकि इसके पीछे राजनीतिक, कूटनीतिक, आर्थिक, धार्मिक और सामरिक कई परतें हैं। लेकिन साथ न देने के पीछे जो पांच सबसे बड़ा कारण वो हम आपको बताते है ,

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साथ न देने का पहला कारण है ,मुस्लिम देशों की आपसी फूट और मतभेद,जैसे सुन्नी-शिया विवाद: ईरान एक शिया बहुल देश है, जबकि अधिकतर मुस्लिम देश (जैसे सऊदी अरब, यूएई, मिस्र) सुन्नी हैं। इनमें ईरान को लेकर ऐतिहासिक अविश्वास है।दूसरा कारण है , इज़रायल से छुपे या खुले रिश्ते,,यानिकि कई मुस्लिम देश अब इज़रायल के साथ कूटनीतिक, सैन्य और आर्थिक रिश्ते बना चुके हैं,,,यूएई, बहरीन, मोरक्को, सूडान ने अब्राहम समझौते के तहत इज़रायल को मान्यता दी है।सऊदी अरब भी धीरे-धीरे इज़रायल से संबंध सामान्य करने की प्रक्रिया में है।तीसरा कारण है ,अमेरिका का दबाव और सहयोग,अमेरिका अधिकांश मुस्लिम देशों (खासतौर पर खाड़ी देशों) का सुरक्षा साझेदार और आर्थिक संरक्षक है।ईरान के खिलाफ अमेरिका का रुख स्पष्ट है, और अगर इज़रायल कोई हमला करता है, तो वह अमेरिका की छाया स्वीकृति या समर्थन से होता है।चौथा सबसे बड़ा कारण है .फिलिस्तीन जैसा भावनात्मक मुद्दा नहीं है ईरान के ऊपर हमला करना ,जैसे जब इज़रायल गज़ा या वेस्ट बैंक पर हमला करता है, तो मुस्लिम देशों में जनता भावुक होती है, विरोध होता है।लेकिन ईरान पर हमला फिलिस्तीन जैसी धार्मिक भावनाओं को नहीं जगाता।पांचवा और अंतिम कारण है .आंतरिक समस्याओं में उलझे मुस्लिम देश,पाकिस्तान, इराक, सीरिया, लीबिया, सूडान जैसे कई मुस्लिम देश खुद आंतरिक संघर्ष, आर्थिक बदहाली और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहे हैं।वे किसी और देश के पक्ष में लड़ने या बोलने की हालत में नहीं हैं.

डर और स्वार्थ की राजनीति

ईरान पर बोलने का मतलब है सीधा अमेरिका-इज़रायल से टकराव, जो कई मुस्लिम देशों के हितों के खिलाफ है।बहुत से देशों को डर है कि ईरान का साथ देने पर उन्हें भी प्रतिबंध, हमले या वैश्विक अलगाव का सामना करना पड़ सकता है।क्योंकि मुस्लिम दुनिया में एकता नहीं है, राष्ट्रीय हित, अमेरिका और इज़रायल से संबंध, ईरान से मतभेद, और जनता का मौन—ये सब मिलकर उन्हें चुप करा देते हैं।

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