कर्नाटक की राजनीति इन दिनों एक गायब कागज को लेकर उबाल पर है, जिसे राहुल गांधी और कांग्रेस ने सामाजिक न्याय की सबसे बड़ी ताकत बताया था। यही रिपोर्ट कांग्रेस की दिल्ली फतह की रणनीति का अहम हिस्सा मानी जा रही थी। लेकिन अब यह कांथराज आयोग की जातिगत सर्वे रिपोर्ट रहस्यमय तरीके से गायब हो गई है, और कांग्रेस सरकार इस मुद्दे पर खामोश है।
क्या है कांथराज आयोग की रिपोर्ट?
कांग्रेस इस रिपोर्ट को पिछड़े वर्गों के अधिकारों की बुनियाद बता रही थी। राहुल गांधी कई बार मंचों से इसका ज़िक्र कर चुके हैं और जातीय जनगणना की मांग तेज़ कर चुके थे। लेकिन अब खुद कर्नाटक सरकार मान रही है कि मूल रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है। इसके बदले 2023 में बनी सैंपल डेटा आधारित रिपोर्ट को सामने लाया गया है।
विपक्ष का हमला तेज़
बीजेपी और जेडीएस ने इसे जनता के साथ धोखा बताते हुए कांग्रेस सरकार पर बड़ा हमला बोला है।बीजेपी नेता आर. अशोक ने कहा – “जिस दस्तावेज़ की नींव ही नहीं है, उस पर नीति कैसे बनेगी?”जेडीएस ने इसे वोट बैंक की राजनीति बताया और कहा कि जब तक सरकार मूल रिपोर्ट का हिसाब नहीं देती, नई रिपोर्ट स्वीकार नहीं की जा सकती।
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वायरल पत्र ने खोली पोल
सोशल मीडिया पर एक पत्र वायरल हुआ है जिसमें खुलासा हुआ कि नवंबर 2023 में आयोग के अध्यक्ष ने सरकार को बताया था कि रिपोर्ट के मूल दस्तावेज गायब हैं। छपी हुई प्रतियां तो थीं, लेकिन सदस्य सचिव के हस्ताक्षर नहीं थे और ब्लूप्रिंट भी नदारद था। अधिकारी ने साफ कहा कि रिपोर्ट खो गई है। इस रिपोर्ट पर 160 करोड़ रुपये खर्च हुए थे।
संशोधित रिपोर्ट पर उठ रहे सवाल
राज्य के गृह मंत्री जी परमेश्वर ने रिपोर्ट का बचाव करते हुए कहा कि यह रिपोर्ट वैज्ञानिक पद्धति से तैयार की गई है। लेकिन समाजशास्त्रियों का कहना है कि सैंपल डेटा केवल मोटा अनुमान देता है – और जातिगत आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दों पर यह कमजोर आधार हो सकता है।
कांग्रेस की रणनीति पर संकट
“जनगणना कराओ, हक दिलाओ” जैसे नारे कांग्रेस की नीति का हिस्सा रहे हैं। लेकिन अब जब सबसे अहम रिपोर्ट ही लापता है, तो कांग्रेस को बड़ा राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। यह मुद्दा न सिर्फ पार्टी की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है, बल्कि विपक्ष को एक और हथियार भी दे गया है।