Home Political news जाति जनगणना से बटेंगे मुस्लिम ,होगा बड़ा खेल ,फंस जायेंगे अखिलेश !

जाति जनगणना से बटेंगे मुस्लिम ,होगा बड़ा खेल ,फंस जायेंगे अखिलेश !

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जाति जनगणना से उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ा बदलाव संभव है। मुसलमानों को अब सिर्फ एक मजहबी पहचान से नहीं, बल्कि जातीय दृष्टिकोण से भी देखा जाएगा। जिससे भाजपा को पसमांदा कार्ड खेलने का मौका मिलेगा, जबकि सपा, कांग्रेस और बसपा को अपनी रणनीति में बड़ा फेरबदल करना होगा। यह साफ है कि 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव और 2029 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम समाज के भीतर का यह जातीय विमर्श राजनीति की नई धुरी बनने जा रहा है। पहली बार ऐसा होने जा रहा है कि मुस्लिम समाज की विभिन्न जातियों जैसे पसमांदा, अंसारी, मंसूरी, कसाई, कुंजड़ा, सैफी, राईं, हजाम की गणना अलग-अलग की जाएगी। इससे सामाजिक न्याय की बहस सिर्फ हिंदू समाज तक सीमित न रहकर मुस्लिम समुदाय की भी परतें खोलेगी।

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अभी तक मुस्लिम समाज एक वोट बैंक के रूप में एकजुट माना जाता रहा है, लेकिन जातिगत आंकड़ों के आने से यह साफ हो जाएगा कि पसमांदा और अशराफ में कितनी सामाजिक और आर्थिक खाई है।उत्तर प्रदेश में मुस्लिम आबादी करीब 19% है। अब तक इसे एक एकजुट वोट बैंक के रूप में देखा जाता रहा है, जो आमतौर पर समाजवादी पार्टी ,बहुजन समाज पार्टी या कांग्रेस को समर्थन देता रहा है। लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि यहां मुस्लिम समाज के भीतर भी गहरी जातीय असमानता मौजूद है। पसमांदा मुस्लिम राज्य के मुस्लिमों की आबादी का अनुमानत 70-75% हिस्सा हैं, जबकि अशराफ मुस्लिम (जैसे सैयद, पठान, शेख) राजनीतिक, धार्मिक नेतृत्व में हावी रहे हैं।समाजवादी पार्टी मुस्लिम-यादव समीकरण के सहारे चुनाव लड़ती आई है, लेकिन अगर पसमांदा मुस्लिम अपने अलग हक की मांग पर मुखर हुए, तो सपा को केवल अशराफ मुस्लिम पार्टी समझे जाने का खतरा होगा। वहीं, बसपा जो दलित-पिछड़ा गठबंधन पर काम करती रही है, पसमांदा को जोड़कर नए सामाजिक समीकरण बना सकती है। लेकिन इसके लिए उसे मुस्लिम नेतृत्व के चयन में बड़ा बदलाव करना होगा।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2024 चुनाव में पसमांदा मुस्लिम का जिक्र बार-बार कर संकेत दिया कि भाजपा इस वर्ग को कांग्रेस, सपा जैसे दलों से अलग कर अपने पक्ष में लाने की कोशिश करेगी। भाजपा यह नैरेटिव बना रही है कि सपा-कांग्रेस जैसे दलों ने सिर्फ कुलीन मुस्लिमों को आगे बढ़ाया, जबकि पसमांदा वंचित रह गए।

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