4 अगस्त, 1983 को एक फिल्म रिलीज हुई थी। नाम था- अंधा कानून। अमिताभ बच्चन, रजनीकांत और हेमा मालिनी अभिनीत इस फिल्म का टाइटल सॉन्ग काफी मशहूर हुआ- ये अंधा कानून है… मशहूर संगीतकार आनंद बख्शी ने कोर्ट-कचहरी, वकील-दलील, सुनवाई-फैसले के हालात को शब्द दिए तो किशोर कुमार ने उसे अपनी आवाज देकर कानून को लेकर जन-जन की पुकार माननीयों तक पहुंचा दी। एक जगह किशोर गाते हैं- अस्मतें लुटीं, चली गोली, इसने आंख नहीं खोली। फिर वो कहते हैं- लंबे इसके हाथ सही, ताकत इसके साथ सही। पर ये देख नहीं सकता, ये बिन देखे है लिखता.आनंद बख्शी ने कानून के अंधे होने के ये सबूत देने के अलावा भी पूरे गीत में बहुत कुछ कहा है। बख्शी का वो कहना और किशोर का उसे गाना, उनके जीवन में कोई रंग नहीं ला सका। अब जब वो दोनों नहीं हैं तो कानून के सबसे बड़े मंच संचालक सुप्रीम कोर्ट ने प्रतीकात्मक ही सही, लेकिन कदम उठाया है। सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की नई मूर्ति लगाई गई है. जजों की लाइब्रेरी में लगाई गई मूर्ति की खासियत यह है कि इसकी आंखों पर पट्टी नहीं बंधी है. परंपरागत मूर्ति की तरह इसके एक हाथ मे तराजू तो है पर दूसरे हाथ में तलवार की जगह भारत का संविधान है.
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सांकेतिक रूप से देखा जाए तो कुछ महीने पहले लगी न्याय की देवी की नई मूर्ति साफ संदेश दे रही है कि न्याय अंधा नहीं है. वह संविधान के आधार पर काम करता है. ऐसा बताया जा रहा है कि यह मूर्ति चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की पहल पर लगाई गई है. हालांकि, फिलहाल यह साफ नहीं है कि ऐसी और मूर्तियां लगाई जाएंगी या नहीं.,य की देवी की नई मूर्ति में क्या कुछ खास है?
पूरी मूर्ति सफेद रंग की है
प्रतिमा में न्याय की देवी को भारतीय वेषभूषा में दर्शाया गया है. वह साड़ी में दर्शाई गई हैं
सिर पर सुंदर का मुकुट भी है
माथे पर बिंदी, कान और गले में पारंपरिक आभूषण भी नजर आ रहे हैं
न्याय की देवी के एक हाथ में तराजू है
दूसरे हाथ में संविधान पकड़े दिखाया गया है
दरअसल, न्याय का प्रतिनिधित्व करने वाली अदालतों में रखी गई मूर्ति को ‘लेडी जस्टिस’ के नाम से जाना जाता है. न्याय की देवी की अब तक जो मूर्ति इस्तेमाल होती थी, उसमें आंखों पर काले रंग की पट्टी बंधी नजर आती थी, जबकि एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में तलवार हुआ करती थी ,सुप्रीम कोर्ट के एक उच्च अधिकारी ने बताया है कि यह मूर्ति नई नहीं है. इसे पिछले साल अप्रैल में ही जजों की लाइब्रेरी में लगाया गया था. लाइब्रेरी में इस मूर्ति को लगाने के पीछे का एक मकसद अध्ययन को बढ़ावा देना भी है.