पाकिस्तान में मंगलवार को यात्रियों से भरी जफर एक्सप्रेस ट्रेन को हाईजैक कर लिया गया। इस घटना की जिम्मेदारी बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) ने ली है। इसके बाद न केवल पाकिस्तान बल्कि भारत और दुनिया भर में बलूच विद्रोहियों का मुद्दा फिर से सुर्खियों में आ गया है।
भारत में भी बलूचिस्तान का मुद्दा पहले सुर्खियों में आ चुका है। खासतौर पर अगस्त 2016 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले से अपने भाषण में बलूचिस्तान में पाकिस्तान द्वारा किए जा रहे अत्याचारों का जिक्र किया था। इस पर पाकिस्तान ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी, जबकि बलूच नेताओं ने मोदी को धन्यवाद दिया था।
अब इस ट्रेन हाईजैक की घटना के बाद कई सवाल उठ रहे हैं – बलूच विद्रोही कौन हैं? उनकी मांगें क्या हैं? वे कब से पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं? और बलूचिस्तान की आजादी की मांग क्यों उठ रही है? इन सभी सवालों के जवाब जानना बेहद जरूरी हो गया है।

बलूचिस्तान: पाकिस्तान का सबसे बड़ा लेकिन सबसे उपेक्षित प्रांत
बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, लेकिन यहां की आबादी बेहद कम है और विकास के मामले में यह बाकी सूबों से काफी पीछे है। रोजगार के अवसर सीमित हैं, जबकि यहां प्राकृतिक संसाधनों, खासकर तेल और गैस, की प्रचुरता है। इसके बावजूद यहां के लोगों को गरीबी और उपेक्षा का सामना करना पड़ता है, जिससे यह इलाका पाकिस्तान के लिए रणनीतिक रूप से अहम लेकिन अशांत क्षेत्र बना हुआ है।
बलूचों पर दशकों से जारी जुल्म और संघर्ष
1947 में भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के साथ ही बलूचिस्तान के लोगों ने पाकिस्तानी सेना और सरकार के दमनचक्र को झेला है। इससे पहले मकरान, लस बेला, खारन और कलात जैसे क्षेत्रीय बलूच सरदार ब्रिटिश हुकूमत के प्रति वफादार थे। इनमें सबसे ताकतवर कलात का सरदार था, जिसके अधीन बाकी क्षेत्र आते थे।
जब ब्रिटिश शासन खत्म होने वाला था, तब कलात के अंतिम खान, सरदार अहमद यार खान, ने एक स्वतंत्र बलूच राष्ट्र की मांग उठाई। उन्हें भरोसा था कि उनके मोहम्मद अली जिन्ना से अच्छे संबंधों के चलते पाकिस्तान में शामिल होने के बजाय बलूचिस्तान को अलग देश का दर्जा मिलेगा।
1947 में पाकिस्तान और बलूच सरदारों के बीच मैत्री समझौता हुआ, लेकिन ब्रिटिश शासन चाहता था कि कलात का पाकिस्तान में विलय हो जाए। इसके बाद पाकिस्तान ने चालाकी से कलात पर दबाव बनाना शुरू कर दिया और बलूचों की स्वतंत्रता की मांग को कुचलने के लिए सैन्य कार्रवाई शुरू कर दी।

बलूचिस्तान: संघर्ष, विद्रोह और आज़ादी की लड़ाई
पाकिस्तान की चालाकी और बलूचों का संघर्ष
1947 के बाद पाकिस्तान ने चालाकी से बलूचिस्तान को अपने कब्जे में लेने की योजना बनाई। अक्टूबर 1947 में, उसने कलात पर दबाव डालना शुरू कर दिया और 17 मार्च 1948 को इसके तीन क्षेत्रों को मिला लिया। इस दौरान, ऑल इंडिया रेडियो पर यह अफवाह फैली कि कलात के खान भारत में शामिल होना चाहते हैं।
26 मार्च 1948 को, पाकिस्तान की सेना बलूचिस्तान में घुस गई, और अगले ही दिन कलात के विलय का समझौता जबरन करवाया गया। इसके बाद बलूचों ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया, जो आज तक जारी है।
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बलूचिस्तान की आज़ादी के लिए 5 बड़े युद्ध
बलूचिस्तान ने अब तक 5 युद्ध लड़े हैं:
- 1948
- 1958-59
- 1962-63
- 1973-77
- 2003 से अब तक जारी संघर्ष
हर बार पाकिस्तान की सेना ने बलूच विद्रोह को कुचलने की कोशिश की, लेकिन बलूच लड़ाके हर बार दोबारा खड़े हो गए।
बलूचिस्तान में पाकिस्तान की बर्बरता
पाकिस्तानी सेना पर बलूच नागरिकों के अपहरण, यातना, मनमानी गिरफ्तारियां और हत्याओं का आरोप लगता रहा है।
एनजीओ Voice for Baloch Missing Persons के अनुसार, 2001 से 2017 के बीच 5,228 बलूच नागरिक लापता हो गए, और माना जाता है कि वे अब जिंदा नहीं हैं। पाकिस्तान का यह दमनचक्र बलूचिस्तान में आज़ादी की आग को और भड़का रहा है।
बलूच विद्रोही गुट भी बने हिंसा का हिस्सा
पाकिस्तानी सेना की बर्बरता के जवाब में बलूच लड़ाकों ने भी हथियार उठा लिए। बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) और बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (BLF) जैसे संगठनों पर गैर-बलूच लोगों की हत्या और मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया जाता है।
Pakistan Institute for Peace Studies की ‘Pakistan Security Report 2023’ के मुताबिक,
- 2023 में बलूच विद्रोहियों ने 78 हमले किए।
- इन हमलों में 86 लोग मारे गए और 137 घायल हुए।
- बलूचिस्तान के 19 जिलों में सुरक्षा बलों को खासतौर पर निशाना बनाया गया।
बलूचिस्तान की आज़ादी की मांग क्यों बढ़ी?
बलूचिस्तान में आज़ादी की मांग दो बड़ी वजहों से तेज़ हुई:
1️⃣ भेदभाव और हाशिए पर रखा जाना
- बलूचों की संस्कृति, भाषा और इतिहास अलग है, लेकिन पाकिस्तान बनने के बाद से ही यहां पंजाबियों का दबदबा रहा है।
- सेना, नौकरशाही और अन्य बड़े संस्थानों में पंजाब के लोगों का ही वर्चस्व रहा है।
- यहां तक कि पाकिस्तान की क्रिकेट टीम में भी पंजाबियों की भरमार रही, जिससे बलूचों को लगा कि उनके साथ भेदभाव हो रहा है।
2️⃣ बलूचिस्तान के संसाधनों की लूट
- बलूचिस्तान तेल, गैस और अन्य खनिज संसाधनों से भरपूर है, लेकिन इनका फायदा बलूचों को नहीं, बल्कि पंजाब के लोगों को मिलता है।
- चीन द्वारा बनाए जा रहे ग्वादर पोर्ट में अरबों रुपये का निवेश हुआ, लेकिन बलूचों को रोजगार नहीं मिला, बल्कि सिंधी और पंजाबी इंजीनियरों को भर्ती किया गया।
- इस अन्याय के चलते बलूच लड़ाकों ने पंजाबियों को कई बार निशाना बनाया।
पाकिस्तान के लिए नासूर बनता बलूचिस्तान
पाकिस्तानी सरकार और सेना पूरी ताकत से बलूच लड़ाकों को दबाने की कोशिश कर रही है, लेकिन यह संघर्ष हर बीतते दिन के साथ और उग्र होता जा रहा है।इस्लामाबाद बार-बार भारत और ईरान पर बलूचिस्तान में हिंसा भड़काने का आरोप लगाता है, लेकिन भारत ने इसे सिरे से खारिज किया है।सच्चाई यह है कि बलूचिस्तान पाकिस्तान के लिए एक नासूर बन चुका है, जिसे नज़रअंदाज करना अब इस मुल्क के लिए नामुमकिन होता जा रहा है।