बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राज्य की राजनीति में उथल-पुथल मची हुई है। आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव सीएम नीतीश कुमार का सियासी “टेम्परेचर” मापने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। बाप-बेटे की इस सियासी चाल ने बिहार के राजनीतिक तापमान को तो बढ़ा दिया है, लेकिन नीतीश कुमार की चुप्पी ने लालू के अरमानों पर पानी फेर दिया है।
लालू की ‘लॉलीपॉप पॉलिटिक्स’ का असर?
नीतीश कुमार की राजनीति में कब क्या होगा, यह अंदाजा लगाना किसी के लिए आसान नहीं। लालू यादव ने हाल ही में बयान देकर कहा कि उन्होंने नीतीश के लिए दरवाजे खुले रखे हैं। लेकिन जब पत्रकारों ने नीतीश कुमार से इस पर सवाल पूछा, तो वह सिर्फ मुस्कुराकर और हाथ जोड़कर आगे बढ़ गए। दूसरी ओर, जदयू नेता ललन सिंह का कहना है कि एनडीए पूरी मजबूती के साथ खड़ा है, और लालू का यह बयान सिर्फ “शिगूफा” है।
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नीतीश की ‘पलटीमार पॉलिटिक्स’
नीतीश कुमार की राजनीति का इतिहास गवाह है कि वह कब पलटी मारेंगे, इसका अंदाजा किसी को नहीं होता। उनकी रणनीति का ताजा उदाहरण केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह से बेहतर कौन जान सकता है। इसी बीच, लालू यादव ने “दरवाजा खुला” रखने का बयान देकर न केवल सियासी हलचल बढ़ाई, बल्कि आरजेडी कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया। लेकिन इस बार यह ‘लॉलीपॉप पॉलिटिक्स’ शायद नीतीश कुमार पर ज्यादा असरदार नहीं हो रही।
गुरुवार की हलचल
गुरुवार को नए राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के शपथ ग्रहण समारोह में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच मुलाकात केवल औपचारिकता थी या इसके पीछे कुछ और भी है, इस पर अटकलें लग रही हैं। दूसरी तरफ, प्रशांत किशोर का आमरण अनशन शुरू होना, लालू और नीतीश दोनों के लिए नई चुनौती बन गया है।
क्या लालू का थर्मामीटर हुआ फेल?
बिहार की राजनीति के जानकार मानते हैं कि लालू यादव माहिर खिलाड़ी हैं और वे बीच-बीच में नीतीश कुमार का “टेम्परेचर” मापते रहते हैं। लेकिन इस बार उनकी लॉलीपॉप पॉलिटिक्स का असर फीका पड़ता दिख रहा है। नीतीश की चुप्पी और एनडीए के मजबूत रुख के बीच,
लालू यादव का यह थर्मामीटर काम करता नजर नहीं आ रहा। हाल के सियासी घटनाक्रमों से साफ है कि नीतीश कुमार अपनी रणनीति पर कायम हैं, और लालू का यह दांव शायद इस बार कामयाब नहीं होगा। बिहार की राजनीति में आगे क्या होगा, यह देखना दिलचस्प होगा।