Home Uttar Pradesh महाकुंभ में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का आस्था से भरा संगम स्नान

महाकुंभ में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का आस्था से भरा संगम स्नान

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सनातन संस्कृति के सबसे बड़े मानव समागम, महाकुंभ में सोमवार को एक ऐतिहासिक क्षण देखने को मिला, जब भारत की दूसरी महिला और पहली आदिवासी राष्ट्रपति, द्रौपदी मुर्मू ने आस्था की पावन डुबकी लगाई। उन्होंने मां गंगा, मां यमुना और मां सरस्वती की त्रिवेणी में स्नान कर पूरी दुनिया को एकता और सामाजिक समरसता का संदेश दिया।

वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच महामहिम ने संगम में पुष्प और नारियल अर्पित किया, भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया और पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। संगम की पवित्र आरती उतारते हुए उन्होंने सनातन संस्कृति की दिव्यता और आध्यात्मिकता का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत किया। इस दौरान उनके साथ उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी मौजूद रहे।

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पूरे विधि-विधान से पूजन और संगम स्नान

संगम में डुबकी लगाने से पहले राष्ट्रपति मुर्मू ने सपरिवार विधिवत पूजन-अर्चन किया। पूरी आस्था के साथ उन्होंने पहले जल को स्पर्श कर आशीर्वाद लिया, फिर फूल, माला और नारियल अर्पित कर देश की शांति और समृद्धि की कामना की।

इसके बाद उन्होंने भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया और श्रद्धा के साथ कई बार पवित्र जल में डुबकी लगाई। स्नान के बाद राष्ट्रपति ने वैदिक मंत्रों के बीच त्रिवेणी का दुग्धाभिषेक किया और अक्षत, नैवेद्य, पुष्प, फल व लाल चुनरी अर्पित कर मां गंगा, यमुना और सरस्वती की आराधना की। संगम स्थल पर तीर्थ पुरोहितों ने उनका स्वागत किया और कलावा बांधकर अभिनंदन किया।

प्रयागराज पहुंचते ही हुआ भव्य स्वागत

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के प्रयागराज आगमन पर राज्यपाल आनंदी बेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। इसके बाद वे अरैल घाट पहुंचीं, जहां से क्रूज पर सवार होकर संगम के लिए रवाना हुईं।

नौका विहार का आनंद लेते हुए उन्होंने पक्षियों को अपने हाथों से दाना खिलाया, जिससे इस पावन यात्रा का दृश्य और भी दिव्य हो गया। इस दौरान राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने उन्हें महाकुंभ की भव्य तैयारियों और व्यवस्थाओं की जानकारी दी।

महाकुंभ में महामहिम का आगमन – एक ऐतिहासिक क्षण!

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का महाकुंभ में आगमन न केवल प्रयागराज, बल्कि पूरे देश के लिए ऐतिहासिक रहा। उनकी उपस्थिति ने महाकुंभ के धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व को नई ऊंचाई दी।

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