अयोध्या – श्रीराम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का 87 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वह लखनऊ के एसजीपीजीआई अस्पताल में भर्ती थे, जहां ब्रेन हेमरेज के चलते उन्होंने सुबह 7 बजे अंतिम सांस ली। उनके निधन से राम मंदिर ट्रस्ट, अयोध्या और संत समाज में गहरा शोक व्याप्त है।
रामलला की सेवा में 32 वर्षों का समर्पण
आचार्य सत्येंद्र दास 1992 से ही श्रीराम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी के रूप में सेवा दे रहे थे। बाबरी विध्वंस से 9 महीने पहले ही उनका चयन हुआ था। 32 वर्षों तक उन्होंने रामलला की पूजा-अर्चना की और भव्य राम मंदिर निर्माण का सपना साकार होते देखा। उनके निधन के बाद रामनगरी के मठ-मंदिरों में शोक की लहर दौड़ गई है।
बीमारी और इलाज की जद्दोजहद
2 फरवरी को स्ट्रोक आने के बाद उन्हें अयोध्या के अस्पताल में भर्ती कराया गया, फिर हालत गंभीर होने पर उन्हें लखनऊ रेफर किया गया। डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों से जूझ रहे आचार्य जी को ब्रेन हेमरेज हुआ था। 4 फरवरी को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अस्पताल जाकर उनका हाल जाना और डॉक्टरों से बातचीत कर बेहतर इलाज के निर्देश दिए। लेकिन सभी प्रयासों के बावजूद, उनका निधन हो गया।
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आचार्य सत्येंद्र दास: एक संत का सफर
जन्मस्थान: संत कबीरनगर, लेकिन बचपन से अयोध्या में रहे
1976: संस्कृत विद्यालय में अध्यापक बने
1992: राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी के रूप में नियुक्ति
32 वर्षों तक रामलला की सेवा
100 रुपये पारिश्रमिक से शुरुआत, बाद में 13,000 रुपये वेतन
राम मंदिर निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा देखना था उनका सपना
बाबरी विध्वंस से लेकर राम मंदिर तक का सफर
1992 में बाबरी विध्वंस के दौरान सत्येंद्र दास वहीं मौजूद थे। उन्होंने बताया था कि 11 बजे उन्हें रामलला को भोग लगाकर पर्दा लगाने के लिए कहा गया, और जैसे ही विवादित ढांचा गिरा, वे रामलला को सुरक्षित स्थान पर ले गए। उन्होंने हमेशा उम्मीद जताई थी कि रामलला का भव्य मंदिर जरूर बनेगा, और उनका यह सपना 2024 में साकार हुआ।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जताया शोक
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आचार्य सत्येंद्र दास के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया और श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा:
“परम राम भक्त, श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य श्री सत्येंद्र दास जी का निधन अत्यंत दुखद एवं आध्यात्मिक जगत की अपूर्ण क्षति है। प्रभु श्रीराम से प्रार्थना है कि वे दिवंगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें और उनके अनुयायियों को यह दुःख सहने की शक्ति प्रदान करें।”