श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायक की भारत यात्रा से दोनों देशों के रिश्तों में नई ऊर्जा और गहराई आने की उम्मीद है। भारत ने अपनी विशाल भौगोलिक स्थिति और मजबूत राजनीतिक-आर्थिक प्रभाव के कारण हमेशा दक्षिण एशिया में अहम भूमिका निभाई है। आर्थिक संकट से उबर चुका श्रीलंका अब प्रगति के पथ पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति दिसानायक ने रक्षा सहयोग समझौते को जल्द ही अंतिम रूप देने पर सहमति जताई है।
इतिहास में जुड़े भारत-श्रीलंका
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब एशिया में स्वतंत्रता की लहर चल रही थी, उस समय भारत और श्रीलंका के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध मजबूत थे। हालांकि, 1950 के दशक में श्रीलंकाई प्रधानमंत्री जॉन कोटलावाला के विवादित बयानों ने रिश्तों में खटास ला दी। इसके बावजूद पंडित नेहरू ने दोस्ताना संबंधों का समर्थन किया। सोलोमन भंडारनायके के सत्ता में आने के बाद दोनों देशों के बीच घनिष्ठता बढ़ी और उनकी नीतियों को उनकी पत्नी सिरिमावो भंडारनायके ने भी आगे बढ़ाया।
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तमिल संघर्ष और भारत का प्रभाव
श्रीलंका में तमिल अल्पसंख्यकों के संघर्ष ने देश को गृहयुद्ध में धकेल दिया। इससे भारत भी प्रभावित हुआ, खासकर तमिलनाडु में बसे विस्थापितों के कारण। एलटीटीई (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम) की हिंसा ने संबंधों को और जटिल बना दिया। प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या ने इस मुद्दे को और संवेदनशील बना दिया। 2009 में प्रभाकरण के मारे जाने के साथ श्रीलंका में सशस्त्र संघर्ष का दौर खत्म हुआ और देश ने विकास की ओर कदम बढ़ाए।
भारत-श्रीलंका संबंधों में नई शुरुआत
चीन की विस्तारवादी नीतियों के खतरे को समझते हुए श्रीलंका ने अब भारत के साथ संबंधों को प्राथमिकता दी है। राष्ट्रपति दिसानायक ने आश्वासन दिया है कि श्रीलंका की भूमि भारत के खिलाफ उपयोग नहीं होगी। प्रधानमंत्री मोदी ने भी दोनों देशों के संबंधों में नई ऊर्जा और भागीदारी पर संतोष व्यक्त किया है।
दोनों देशों ने आर्थिक सहयोग और निवेश को प्राथमिकता दी है। उम्मीद है कि इस यात्रा से भारत और श्रीलंका के बीच भौतिक, डिजिटल और ऊर्जा साझेदारी को और मजबूती मिलेगी।