मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट पर होने वाला उपचुनाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नए सियासी समीकरण बनने के संकेत दे रहा है। सपा प्रत्याशी सुम्बुल राणा की उम्मीदवारी भाजपा ही नहीं, बसपा के लिए भी मुश्किल का सबब बन सकती है। सुम्बुल राणा कभी बसपा व अब सपा के कद्दावर नेता कादिर राणा की बहू और बसपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व राज्यसभा सदस्य मुनकाद अली की बेटी हैं।
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मीरापुर के जरिये पश्चिमी यूपी में मुस्लिम वोट बैंक का एकजुट होना बसपा की बेचैनी बढ़ा रहा है। बता दें कि सपा सरकार के समय 2013 में दंगों में झुलसे मुजफ्फरनगर ने पश्चिमी यूपी में नए सियासी समीकरण बनाए थे। तब सपा-भाजपा आमने-सामने आ गए थे और पश्चिमी उप्र की सियासत में दखल रखने वाली बसपा हाशिये पर चली गई थी।बसपा ने मीरापुर से शाह नजर को टिकट दिया है, जो आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद के करीबी रहे हैं। बता दें कि मेरठ मंडल की जिम्मेदारी संभालने वाले मुनकाद अली के समय लोकसभा चुनाव 2014 और विधानसभा चुनाव 2017 में बसपा को शिकस्त का सामना करना पड़ा। लोकसभा चुनाव 2019 में सपा का साथ मिलने पर बसपा को पश्चिमी उप्र की चार सीटों पर जीत मिली। सपा-बसपा गठबंधन लंबा नहीं चला। विधानसभा चुनाव 2022 में बसपा का पश्चिमी उप्र में सफाया हो गया। यही हाल लोकसभा चुनाव 2024 में भी हुआ। अब उपचुनाव में सुम्बुल की उम्मीदवारी ने मुस्लिम वोट बैंक को ठोस विकल्प दे दिया है। सुम्बुल की उम्मीदवारी को तीन महीने पहले मुनकाद अली से मेरठ मंडल की जिम्मेदारी छीन लेने से भी जोड़ा जा रहा है।सपा के इस दांव ने भाजपा को भी प्रत्याशी चयन से पहले कील-कांटे दुरुस्त करने को मजबूर कर दिया है। यूं कहें कि अब लड़ाई सीधे सपा और भाजपा के बीच हो सकती है। चर्चा यह भी है कि कांग्रेस नेता इमरान मसूद मीरापुर सीट से पार्टी प्रत्याशी को उतारने की कवायद में जुटे थे। अब सुम्बुल के नाम की घोषणा ने कांग्रेस के खेमे में हलचल मचा दी।मीरापुर में सपा सियासी जमीन तलाश रही है, जिसके लिए उसे सुम्बुल राणा मुफीद लगीं। सपा ने 1996 में मीरापुर सीट पर जीत हासिल की थी। तब यह मोरना सीट थी। इससे पहले और बाद में कांग्रेस, जनता पार्टी, भाजपा और रालोद का सीट पर कब्जा रहा। वर्ष 2012 में परिसीमन के बाद मीरापुर सीट बनी तो बसपा, भाजपा और रालोद बारी-बारी से जीतते रहे।