बांग्लादेश में हिंदुओं के प्रमुख धार्मिक नेता चिन्मय दास प्रभु की गिरफ्तारी एक गंभीर मामला बन गया है। जो बांग्लादेश कभी लोकतंत्र और प्रगति के रास्ते पर आगे बढ़ रहा था, वहां अचानक जिहादी ताकतों का प्रभाव बढ़ गया है। हालात ऐसे हो गए हैं कि न प्रधानमंत्री सुरक्षित हैं, न मुख्य न्यायाधीश, और न ही राष्ट्रपति को बख्शा गया है। अब उनका अंतिम निशाना वहां के अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय बन गया है।
बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमले और उत्पीड़न ने हालात को लगभग नरसंहार की ओर धकेल दिया है। इस पर तुरंत रोक लगनी चाहिए। मेरा मानना है कि वैश्विक समुदाय को भी इस मुद्दे पर सामने आकर हस्तक्षेप करना चाहिए। भारत सरकार ने प्रयास तो किए हैं, लेकिन अब तक इसके ठोस परिणाम देखने को नहीं मिले हैं।
ऐसी स्थिति में आवश्यक है कि पूरी विश्व बिरादरी एकजुट होकर खड़ी हो और मानवाधिकार के लिए बने वैश्विक संगठन, जैसे- यूएनओ या यूएनएचआरसी, अपनी जिम्मेदारी निभाएं। इन संगठनों का उद्देश्य मानवाधिकार उल्लंघन पर कार्रवाई करना है, लेकिन जब हिंदुओं पर हमले होते हैं या इस्लामिक जिहादी आक्रमण करते हैं, तो वे चुप क्यों रहते हैं? आखिर यह दोहरी नीति क्यों अपनाई जाती है?
विश्व हिंदू परिषद ने देशभर में प्रदर्शन आयोजित किया, ताकि ये संदेश दिया जा सके कि कैसे जिहादी तत्व हिंसा फैला रहे हैं। कभी लोकतंत्र का उदाहरण रहा बांग्लादेश, अब जिहाद की ओर बढ़ता नजर आ रहा है। जहां कभी काली माता के जयकारे गूंजते थे, आज वहां उनके मंदिर तोड़े जा रहे हैं, मूर्तियां खंडित की जा रही हैं, और भक्तों पर हमले हो रहे हैं।
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हिंदुओं की आस्था के केंद्रों को तबाह किया जा रहा है, जो बिल्कुल गलत है। एक और बड़ा सवाल यह है कि अगर भारत सरकार अपने स्तर पर काम कर रही है, तो क्या विपक्ष को भी अपनी आवाज़ बुलंद नहीं करनी चाहिए? गाजा पर बयानबाज़ी करने वाले इस्लामिक संगठनों की यहां कोई कमी नहीं है, लेकिन जब बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमले होते हैं, तो ये सभी चुप्पी साध लेते हैं।
जमीयत का नेटवर्क वैश्विक है, और बांग्लादेश में तो इनके गहरे संबंध हैं। शायद इसी वजह से उन्होंने चुप्पी साध रखी है। विपक्ष की तरफ से भी अभी तक निंदा के दो शब्द तक नहीं आए हैं। यह सब इन संस्थानों का दोगलापन दिखाता है।दुनिया भर के इस्लामिक देशों को यह समझाना चाहिए कि ऐसी हरकतें इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ हैं। कहा तो जाता है कि ‘इस्लाम शांति का धर्म है’ लेकिन शांति है कहां? इस पर तुरंत रोक लगनी चाहिए।
हालांकि, मोहम्मद युनूस ने ढाका के ढाकेश्वरी मंदिर जाकर अल्पसंख्यक हिंदुओं की सुरक्षा का भरोसा दिया, लेकिन यह सब सिर्फ दिखावा ही साबित हुआ।इससे समस्या का कोई समाधान नहीं निकलता। अब सवाल उठता है कि मोहम्मद यूनुस की सरकार किसने बनाई और क्यों बनाई? ये सवाल अभी भविष्य के गर्भ में छिपे हैं। लेकिन बांग्लादेश को इस वक्त एक मजबूत प्रशासन की सख्त जरूरत है, क्योंकि सत्ता अब इस्लामिक जिहादियों के हाथों में जा चुकी है।बांग्लादेश में आज कानून और व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं बची है, और सरकार की मौजूदगी न के बराबर है। यह स्थिति केवल बांग्लादेश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
जो लोग भगवान शिव की सेवा और मानवता के कार्यों में अग्रणी भूमिका निभाते थे, वही आज जिहादी ताकतों के निशाने पर हैं। इस्कॉन जैसे संस्थान, जो लाखों लोगों को नि:शुल्क भोजन कराते हैं और हर प्राकृतिक आपदा में सबसे आगे नजर आते हैं, उन पर भी हमले किए जा रहे हैं। इन जिहादी तत्वों का मानना है कि गैर-इस्लामिक लोग काफिर हैं, और काफिर की सजा मौत है।
कट्टरपंथियों द्वारा फैलाए गए इस जहरीले विचार ने इस्लामिक युवाओं को भड़काकर हमारे मंदिरों, मूर्तियों, साधु-संतों और आस्था के केंद्रों पर हमला करने के लिए उकसाया है। उनके दिलों में हिंदू धर्म और इसकी पहचान के प्रति ज़हर भर दिया गया है। ऐसे लोग आज समाज के लिए जहरीले सांप बन चुके हैं। इसे ठीक करने के लिए पूरी दुनिया को एकजुट होकर कदम उठाने की जरूरत है।
बांग्लादेश के मुद्दे पर भारत सरकार का रुख क्या होना चाहिए, यह तो केंद्र सरकार को ही तय करना होगा, क्योंकि वही स्थिति को बेहतर समझती है। भारत में एक मजबूत और समझदार सरकार है, जो समस्याओं को लोकतांत्रिक तरीके से सुलझाना जानती है। लेकिन इस मामले में अभी तक कोई ठोस और प्रभावी कदम नहीं उठाया जा सका है। ऐसे में भारत सरकार को कुछ नए और निर्णायक कदम उठाने की जरूरत है, लेकिन इस पर अंतिम फैसला सरकार को ही लेना होगा।
जहां तक भारत और बांग्लादेश के भविष्य के संबंधों की बात है, तो उम्मीद है कि बांग्लादेश इस्लामिक जिहादियों और उनके आक्रमणों से उबर पाएगा। जैसा कहा जाता है, “पूत कपूत हो सकता है, लेकिन माता के व्यवहार में कमी नहीं आती।” उसी तरह भारत और बांग्लादेश की दोस्ती और प्रगति का जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह फिर से बहाल हो। यही बांग्लादेश की भलाई के लिए है और वैश्विक समुदाय के लिए भी।
जब से बांग्लादेश में हसीना सरकार का तख्तापलट हुआ और मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में नई अंतरिम सरकार बनी है, तब से अल्पसंख्यक हिंदुओं पर खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसी स्थिति में, अगर बांग्लादेश खुद कोई ठोस कदम नहीं उठाता, तो वैश्विक समुदाय को उस पर दबाव बनाना चाहिए।
भारत को भी इस मामले में अपने प्रयास तेज करने होंगे। भले ही भारत सरकार ने कड़ी आपत्ति जताई हो, लेकिन अब तक उसका बांग्लादेश पर कोई खास असर दिखाई नहीं दे रहा है। जब तक भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ठोस कदम नहीं उठाएंगे, तब तक बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना मुश्किल होगा।