बिहार की राजनीति में जब भी परिवारवाद की चर्चा होती है, तो लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान जैसे बड़े नेताओं का जिक्र जरूर होता है।लालू यादव जब चारा घोटाले में जेल गए, तो उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी। राबड़ी बिहार की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन उन्हें राजनीति का कोई अनुभव नहीं था। इस मौके का फायदा उठाते हुए उनके दोनों भाई – साधु यादव और सुभाष यादव – काफी ताकतवर हो गए और सरकार की ‘पारिवारिक स्टीयरिंग’ संभालने लगे। हालांकि, 2010 के बाद ये दोनों लालू-राबड़ी से अलग हो गए और राजनीति से धीरे-धीरे हाशिए पर चले गए।
अब बात करते हैं चिराग पासवान की। 2014 में रामविलास पासवान एनडीए का हिस्सा बने और 6 लोकसभा सीटें मिलीं। उन्होंने खुद हाजीपुर से, बेटे चिराग को जमुई से और भाई रामचंद्र पासवान को समस्तीपुर से चुनाव मैदान में उतारा – तीनों जीते। परिवारवाद के आरोप तब और तेज हुए जब 2019 में रामचंद्र की मृत्यु के बाद उनके बेटे प्रिंस पासवान को टिकट मिला और पशुपति पारस को हाजीपुर भेजा गया। चिराग फिर से जमुई से जीते।
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रामविलास के निधन के बाद पार्टी की कमान चिराग पासवान ने संभाली, लेकिन चाचा पशुपति पारस ने पार्टी को ही तोड़ दिया और खुद केंद्रीय मंत्री बन गए। मामला चुनाव आयोग तक पहुंचा और नतीजा ये निकला कि चुनाव आयोग ने पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह जब्त कर लिया। बाद में चिराग को लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और पारस को राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी नाम मिला।
पार्टी और संपत्ति को लेकर चिराग और चाचा के बीच विवाद बढ़ता रहा। चिराग ने रणनीतिक रूप से अपने सौतेली मां राजकुमारी देवी के संपर्क बढ़ाए और अपने पैतृक गांव शहर बन्नी में सक्रियता बढ़ाई। रामविलास की पहली पत्नी खगड़िया में रहती हैं, जिनसे उनकी दो बेटियां आशा और उषा हैं। जबकि चिराग और उनकी बहन निशा, रामविलास और दूसरी पत्नी रीना की संतान हैं।