नई शिक्षा नीति के तहत Maharashtra सरकार ने पहली से पांचवीं कक्षा तक हिंदी को अनिवार्य भाषा बनाने का फैसला किया था, लेकिन इस पर राज्यभर में विवाद खड़ा हो गया। विपक्षी दलों ने इसे मराठी भाषा की अहमियत को कम करने की कोशिश बताया। वहीं, तमिलनाडु में भी तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को अनिवार्य किए जाने का जबरदस्त विरोध हो रहा है।
विवाद बढ़ता देख Maharashtra के मुख्यमंत्री Devendra Fadnavis ने अब स्थिति साफ करते हुए कहा है कि हिंदी अनिवार्य नहीं होगी। छात्रों को हिंदी के अलावा अन्य भारतीय भाषाएं चुनने का विकल्प दिया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा, “राज्य में मराठी अनिवार्य भाषा है, लेकिन हिंदी थोपी नहीं जाएगी। छात्रों को अपनी पसंद की भारतीय भाषा -जैसे तमिल, मलयालम या कोई और भाषा-चुनने की पूरी आज़ादी होगी।”
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उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई छात्र हिंदी के अलावा दूसरी भाषा पढ़ना चाहता है और उस भाषा को पढ़ने वाले कम से कम 20 छात्र हों, तो उसके लिए अलग शिक्षक की व्यवस्था की जाएगी। अगर छात्र कम हैं, तो ऑनलाइन शिक्षा का विकल्प भी उपलब्ध कराया जाएगा।
मुख्यमंत्री Fadnavis ने यह भी सवाल उठाया कि जब लोग अंग्रेजी को आसानी से अपनाते हैं तो हिंदी जैसी भारतीय भाषा का विरोध क्यों करते हैं? उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देना समय की मांग है और सरकार छात्रों को विकल्प देने के पक्ष में है, न कि किसी भाषा को थोपने के।
अब Maharashtra में हिंदी को अनिवार्य नहीं किया जाएगा, बल्कि छात्रों को तीसरी भाषा के रूप में अपनी पसंद की किसी भी भारतीय भाषा को चुनने का अधिकार मिलेगा। सरकार का यह फैसला छात्रों की सहूलियत और भाषायी विविधता के सम्मान को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।