2027 विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहा है, उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर गरमा रही है। आरोप प्रत्यारोप का खेल बढ़ता जा रहा है ,,पंचायती राज का चुनाव भी प्रदेश में होने वाला है .इसी पंचायती राज चुनाव में बीजेपी की सहयोगी दल बीजेपी को आँखे दिखा रहीं हैं . उत्तर प्रदेश में OP राजभर ,अनुप्रिया पटेल ,संजय निषाद ने पहले ही साफ कर दिया है कि पंचायत के चुनाव में वो बीजेपी के साथ चुनाव नहीं लड़ने वाले हैं .इसी लिए ये कहा जा रहा कि 2027 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी कमजोर पड़ सकती हैं .जिसका सीधा फ़ायदा अखिलेश यादव उठा सकते है .इसके आलावा 2027 चुनाव में बीजेपी और योगी की वो कौन सी कमजोरी है जिसका फ़ायदा अखिलेश यादव उठाकर प्रदेश में अपनी सरकार बना सकते हैं .
ALSO READ शराब के नाम पर भड़का बवाल! अयोध्या से दिल्ली तक पहुंचा मामला

आइये आज हम इसी पर बात करते है कि सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ की वो कौन सी कमजोरी है जिसका फ़ायदा विपक्षी दल ने अगर उठा लिया तो up में बड़ा खेल हो सकता हैं . मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जो 2017 और 2022 में भाजपा को प्रचंड बहुमत दिला चुके हैं, अब तीसरे कार्यकाल की ओर देख रहे हैं। लेकिन इस बार चुनौती सिर्फ विपक्ष से नहीं, आंतरिक और जमीनी स्तर की कमजोरियों से भी है। आइए नज़र डालते हैं योगी सरकार की पांच बड़ी संभावित कमजोरियों पर: सूबे में वर्त्तमान सरकार की सबसे बड़ी कमजोरी बेरोजगारी और पेपर लीक कांड है .इससे
यूथ का गुस्सा बढ़ता जा रहा है।बीजेपी सरकार से उनका भरोशा कम हो रहा है .बीते वर्षों में यूपी में तमाम सरकारी भर्तियों के पेपर लीक हुए – UPTET, पुलिस भर्ती, PET जैसी परीक्षाएं चर्चा में रहीं।लाखों बेरोजगार युवाओं में सरकार के प्रति नाराजगी स्पष्ट है, जिसे विपक्ष भुनाने की तैयारी में है। दूसरी बात बुलडोजर की चर्चा , ये बात कहने में कोई दो राय नहीं हैं कि बुलडोजर एक्शन ने मुख्यमंत्री योगी की छवि को मजबूत किया, लेकिन कई मामलों में न्यायिक संस्थाओं से टकराव की स्थिति भी बनी।सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की फटकारें सरकार की ‘कानून से ऊपर कार्यशैली’ पर सवाल उठाती रही हैं।अल्पसंख्यकों के एक वर्ग में असुरक्षा की भावना भी इसी से जुड़ी हुई है।तीसरी सबसे सबसे बड़ी कमजोरी के तौर देखा जाये तो जमीनी स्तर पर BJP विधायक और प्रशासन में टकराव की स्थिति रही हैं प्रदेश के कई जिलों से BJP विधायकों और स्थानीय अफसरों के बीच टकराव की खबरें सामने आई हैं।इससे आम जनता में प्रशासनिक जवाबदेही को लेकर भ्रम और नाराजगी की स्थिति बनी है।कार्यकर्ता और आम भाजपा समर्थक खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।

चौथी बात ग्रामीण क्षेत्रों में विकास असंतुलन रहा हैं .शहरी इलाकों में योगी सरकार की योजनाएं जैसे स्मार्ट सिटी, एक्सप्रेसवे, एयरपोर्ट तेजी से बढ़े हैं।लेकिन ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि सहायता जैसी बुनियादी जरूरतों पर अपेक्षित ध्यान नहीं मिला।इससे गाँव-कस्बों में सरकार के प्रति असंतोष गहरा सकता है।पांचवी सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात या मुद्दा ये है कि पार्टी के भीतर उत्तराधिकारी की चर्चा और सत्ता की थकान रही है ,,लगातार दो कार्यकाल के बाद अब BJP के भीतर ही नेतृत्व को लेकर नई चर्चाएं शुरू हो गई हैं।‘योगी बनाम दिल्ली’ यानी केंद्र और प्रदेश नेतृत्व के बीच खींचतान की बातें भी राजनीतिक गलियारों में तैरती रही हैं।10 साल की सत्ता के बाद “सत्ता विरोधी लहर”का खतरा अब पहले से ज्यादा प्रबल है।इसीलिए सूबे की मुख्या विपक्षी पार्टी सपा इस बार इन सारे मुद्दों को भुनाने का प्रयास करेगी ,,अखिलेश को अगर सत्ता की कुंजी चाहिए तो जनता के बीच में जाकर संगर्ष करनी पड़ेगी वरना योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता अभी भी मजबूत है, लेकिन 2027 तक का सफर उतना आसान नहीं होगा जितना 2017 में था। बेरोजगारी, प्रशासनिक असंतुलन और सत्ता की थकान जैसे मुद्दे, अगर समय रहते नहीं सुलझाए गए, तो यह विपक्ष के लिए बड़ा अवसर बन सकते हैं।