राजनीति यह एक ऐसा शब्द है जहां कुछ भी स्थायी नहीं होता। आज जो साथ है, कल वही विरोध में, और जो कल विरोध में था, आज गले लगकर फोटो खिंचवा रहा है।अब ऊपर से अगर बात उत्तर प्रदेश की राजनीति की हो तो भाई क्या ही कहने। अब देखिए न, वक्फ संशोधन कानून आते ही, यूपी की पार्टियों ने ऐसा सियासी समीकरण बदला है कि सभी हैरान है… सबसे पहले राष्ट्रीय लोक दल को ही देख लीजिए। जयंत चौधरी, जो अब तक जाट + मुस्लिम का पुराना ‘सेक्युलर फॉर्मूला’ चला रहे थे, उन्हें अचानक एहसास हुआ कि मुसलमान भाई तो अब थोड़ा सोच में पड़ गए हैं। वोट देंगे या नहीं, ऐसे में जयंत भइया ने नया कॉम्बिनेशन निकाला – “जाट + दलित अब आप पूछेंगे, ये बदलाव कैसे दिखा? तो साहब, जैसे ही केंद्र ने वक्फ कानून में संशोधन किया, रालोद ने समर्थन भी दिया, लेकिन अंदर ही अंदर उन्हें कन्फ़्यूजन था कि मुस्लिम वोट मिलेगा या नहीं . ऐसे में जयंत चौधरी ने सेफ साइड खेलते हुए पार्टी में दलितों को जोड़ने के लिए अंबेडकर जयंती के दिन सदस्यता अभियान की शुरुआत कर दी… मतलब मुस्लिम वोट जाए तो जाए लेकिन दलित अपने पाले में आ जाए.
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अब भैया रालोद की देखा-देखी अपना दल भी बोला, “भईया, हम क्यों पीछे रहें?” वैसे भी ये पार्टी हमेशा अपने ओबीसी टारगेट को लेकर एक्टिव रहती है। तो उन्होंने भी झट से अंबेडकर जयंती का सहारा लिया, और बोले – वंचितों को जोड़ो, खुद को मजबूत करो… और अब इसके बाद इस मामले में एंट्री होती है पियरका चाचा कहे जाने वाले सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर की… इनका अंदाज भी थोड़ा हटके है… जब सरकार ने मऊ में सालार मसूद गाजी के मेले को रोका, तो लोग उम्मीद कर रहे थे कि सुभासपा कुछ बोलेगी। लेकिन बोलेगी क्या? उन्होंने तो उल्टा सरकार का समर्थन कर दिया… भाईसाब, इसी को कहते हैं राजनीतिक जलेबी.बाहर से कुछ और अंदर से कुछ और!अब आप सोच रहे होंगे कि इतनी उथल-पुथल हो रही है, तो भाजपा क्या कर रही है? अरे साहब, भाजपा तो पूरा गेम ही दूसरे लेवल पर खेल रही है। उन्होंने कानून पास कराया और अब कह रहे हैं कि भाई, ये तो गरीब और पिछड़े मुसलमानों के भले के लिए है!” और अगर ये तबका मान गया तो समझो भाजपा को मिल जाएंगे बोनस वोट्स . मतलब वो जो कभी इनके खिलाफ थे, वही अब इनके सपोर्ट में वोट डाल सकते हैं।और अब इन सियासी सरगरमियों के बीच विपक्ष भी तैयार बैठा है.

विपक्ष पहले से ही मुस्लिम हितैषी होने के चक्कर में वक्फ बिल का विरोध कर रहा हैं . अखिलेश यादव की पार्टी से पहले ही मुस्लिमों को लुभाने के लिए लगातार सनातन विरोधी बयान दिया जा रहे हैं . ऐसे में अब ये देखने लायक होगा कि सत्ताइश के चुनाव में ये दलित और मुस्लिम वोटबैंक किसके पाले में होंगे ..