यूपी में विधानसभा चुनाव 27 में होने हैं। चुनाव में अभी काफी समय बाकी है, लेकिन राज्य में सियासी पारा आये दिन हाई होता जा रहा है।सभी पार्टियां अपनी अपनी मंशा के अनुसार तैयारिया तेज कर दी हैं ,आरोप प्रत्यारोप का खेल प्रदेश में जमकर इस वक्त चल रहा हैं। प्रदेश में जमकर आये दिन प्रदर्शन हंगामा और जोरदार बहस देखने को मिल रही। चाक चौराहों पर भी इस बात की चर्चा अब तेज होने लगी हैं कि इस बार यूपी में किसकी सरकार होगी। लोग कई तरीके की अखिलेश यादव और योगी को लेकर चर्चा कर रहे है यूपी का सबसे अच्छा सीएम कौन हैं ,लेकिन अब इन सब के बीच उत्तर प्रदेश की राजनीति में अखिलेश यादव को भाजपा से आर-पार करने का मुद्दा मिल गया है।
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राजपूत राजा राणा सांगा पर सपा सांसद रामजी लाल सुमन की विवादित टिप्पणी के बाद शुरू हुए सियासी घमासान में उन्हें 2027 के चुनावों की चाभी नजर आ रही है,,,,उत्तर प्रदेश में सपा सांसद रामजी लाल सुमन के घर पर करणी सेना के लोगों द्वारा किए गए घेराव को राजूपत बनाम दलित बनाने की कोशिश हो रही है। अखिलेश की यह रणनीति कितनी सटीक साबित होगी यह तो समय ही बताएगा,,पर इतना तो तय है कि अखिलेश बीजेपी को चिंता में डाल सकते हैं,,,,,2024 के लोकसभा चुनावों में विपक्ष ने बीजेपी को संविधान विरोधी-आरक्षण विरोधी साबित करके नुकसान पहुंचाया था। जाहिर है कि बीजेपी कतई नहीं चाहेगी कि 2027 के चुनावों में भी इस तरह का माहौल बन सके। अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव में पीडीए का दम दिखा चुके हैं.लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को बीजेपी से अधिक सीटें मिलने के पीछे यही माना गया था कि दलित वोटों का ध्रुवीकरण समाजवादी पार्टी की तरफ हुआ था,,,,,यादव, मुसलमान तो समाजवादी पार्टी के साथ रहते ही हैं. मायावती उत्तर प्रदेश की राजनीति में लगातार कमजोर पड़ रही हैं. बीएसपी का वोट प्रतिशत भी घटता जा रहा है.पार्टी का वोट शेयर पिछले लोकसभा चुनाव में घट कर 9.4 फ़ीसदी रह गया था. बीएसपी के कोर वोटर जाटव भी उनका साथ छोड़ सकते हैं. ऐसी दशा में अगर उत्तर प्रदेश की राजनीति में राजपूत बनाम दलित होता है तो निश्चित रूप से समाजवादी पार्टी को फायदा होने वाला है,,,बात बुधवार 26 मार्च को राणा सांगा को गद्दार बोलने वाले समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन के यहां आगरा रेजिडेंस पर करणी सेना के समर्थक पहुंच गए. कहा जा रहा है कि करणी सेना के समर्थकों पर पत्थरबाजी भी हुई,,,,यूपी के CM योगी आदित्यनाथ भी शहर में एक कार्यक्रम में ही मौजूद थे। जो अखिलेश यादव राणा सांगा के मुद्दे पर पहले डैमेज कंट्रोल के लिए एक ऐसा ट्वीट कर चुके थे जो सीधे-सीधे यू टर्न था ,,,,रामजी लाल सुमन के घर करणी सेना के पहुंचने के बाद उन्हें आपदा में अवसर दिखने लगा। उसके बाद अखिलेश यादव के तेवर बदल गये। आगरा दलित राजनीति का नया सेंटर बन गया है। सपा सांसद रामगोपाल यादव रामजी लाल सुमन के घर पहुंचे और कहा कि रामजीलाल सुमन दलित न होते, अगर उन्हीं की बिरादरी के होते तो हमला करते ये लोग। ये पूरे पीडीए पर और पूरे दलित समाज के ऊपर हमला है। अखिलेश यादव ने भी सोशल मीडिया पोस्ट पर इस हमले को पीडीए से जोड़ दिया।इसके बाद रामजी लाल सुमन भी चौड़े से यह कहते हुए देखे जा रहे हैं कि राणा सांगा को गद्दार कहने पर माफी मांगने का सवाल ही नहीं पैदा होता. जाहिर है, समाजवादी पार्टी राणा सांगा विमर्श को दलित विमर्श में बदलने की कोशिश कर रही है.इसके लिए पूरी पार्टी रामजी लाल सुमन के साथ खड़ी हो गई है. अखिलेश यादव की कोशिश है कि यादव, मुस्लिम के साथ दलित वर्ग को वो अपने साथ जोड़ लें,,,इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि समाजवादी पार्टी के लिए राजपूत कभी आधार होते थे. 2012 के विधानसभा चुनाव तक भी क्षत्रिय वोटों पर सपा की पकड़ मजबूत थी.

अखिलेश मंत्रिमंडल में थे 11 ठाकुर इस बात के सबूत थे कि समाजवादी पार्टी को राजूपत वोटों पर भरोसा रहा है. अखिलेश सरकार में रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया, विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह, अरविंद सिंह गोप, राधे श्याम सिंह, राजा आनंद सिंह, योगेश प्रताप सिंह, राजा महेंद्र अरिदमन सिंह समेत कुल 11 ठाकुर मंत्री थे. मगर आज स्थितियां बदल चुकी हैं. अखिलेश यादव समझते हैं कि राजपूत अब समाजवादी पार्टी को वोट नहीं देने वाले हैं. कारण हैं योगी आदित्यनाथ. राजपूत कुल से आने वाले योगी पर उत्तर प्रदेश की राजनीति में ठाकुर वाद का आरोप लगता रहा है. दूसरे अगर यूपी के विधानसभा चुनावों में योगी बनाम अखिलेश हो जाता है तो उत्तर प्रदेश के राजपूत तन मन धन से योगी के साथ होंगे. शायद यही कारण है कि अखिलेश यादव ने राजपूत वोटों की चिंता छोड़कर दलित वोटों पर फोकस करने की सोचा है,,,अखिलेश यादव की इस रणनीति का असर इससे समझ में आता है कि यूपी में दलित राजनीति की मसीहा कही जाने वाली बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो और उत्तर प्रदेश की पूर्व सीएम मायावती के माथे पर भी चिंता की लकीरें आ गईं हैं। सांसद रामजी लाल सुमन के घर हुए हमले को लेकर मायावती ने अखिलेश यादव पर निशाना साधा है। एक्स पर 30 वर्ष पुरानी घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने समाजवादी पार्टी से पश्चाताप करने की मांग की है।

मायावती ने लिखा कि आगरा की हुई घटना के साथ-साथ सपा मुखिया अखिलेश यादव को इनकी सरकार में 2 जून 1995 को लखनऊ स्टेट गेस्ट हाउस कांड में इस पार्टी द्वारा मेरे ऊपर कराया गया जानलेवा हमला भी इनको जरूर याद कर लेना चाहिए तथा इसका पश्चाताप भी जरूर करना चाहिए। उन्होंने दूसरी पोस्ट में कहा कि आगरा घटना की आड़ में अब सपा अपनी राजनीतिक रोटी सेंकना बंद करे और आगरा की हुई घटना की तरह यहां दलितों का उत्पीड़न और ज्यादा न कराये। मायावती ने आगे लिखा कि सपा अपने राजनीतिक लाभ के लिए अपने दलित नेताओं को आगे करके जो घिनौनी राजनीति कर रही है अर्थात उनको नुकसान पहुंचाने में लगी है, यह उचित नहीं है.

दलितों को इनके सभी हथकंडों से सावधान रहना चाहिए. आगरा की हुई घटना अति चिंताजनक है। मायावती की चिंता यह दिखाती है कि अखिलेश यादव का तीर निशाने पर लगा है। मायावती तो अपना किला बचाने सामने आ गईं हैं. हालांकि बीजेपी ने अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालाँकि बीजेपी कई प्लान एक साथ लेकर चलती है,हो सकता है कि राणा सांगा के मुद्दे पर भी उसके पास प्लान बी और सी भी हो। जो आने वाले दिनों में दिख सकता है। पिछले साल हुए लोकसभा चुनावों में बीजेपी के 400 सीट वाले टार्गेट को दलित वोटों के चलते ही भट्ठा लग गया था। उसके बाद भी कांग्रेस और राहुल गांधी जिस तरह दलित वोटर्स को लुभाने की रट लगाए हुए हैं वो बीजेपी के लिए अकसर मुश्किल खड़ी हो जाती है. गृहमंत्री अमित शाह के लोकसभा में दिए बयान को तोड़ मरोड़ कर विपक्ष ने इस तरह हमले किए कि शाह को सफाई देने के लिए पीसी करनी पड़ गई थी। दिल्ली विधानसभा में सीएम कार्यालय से बाबा साहब आंबेडकर की फोटो हटाने पर भी रेखा गुप्ता सरकार को डैमेज कंट्रोल के लिए दूसरी दीवार पर फोटो लगानी पड़ी। अब रामजी लाल सुमन के मुद्दे पर भी बीजेपी बैकफुट पर नजर आ रही है।